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पंचसंग्रह भाग ५ : परिशिष्ट ५
काल कहते हैं । सात श्वासोच्छ्वास काल का एक स्तोक और सात स्तोक का एक लव होता है । साड़े अडतीस लव की एक नाली या घटिका होती है और दो घटिका का एक मुहूर्त होता है ।"
इसके बाद दिन-रात्रि, पक्ष, मास, ऋतु, अयन वर्ष आदि से प्रारम्भ हुई गणना शीर्षप्रहेलिका में पूर्ण होती है । अर्थात् शीर्ष प्रहेलिका पर्यन्त की राशि गणित का विषय है । गणित के श्रमानुसार दिन-रात्रि आदि का प्रमाण इस प्रकार है
तीस मुहूर्त की एक दिन रात्रि होती है । पन्द्रह दिन-रात्रि का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु तीन ऋतु का एक अयन, दो अयन का एक वर्ष, पांच वर्ष का एक युग, बीस युग का एक वर्ष शत ( सौ वर्ष ), दस वर्ष शत का एक वर्ष सहस्र ( एक हजार वर्ष) और सौ वर्ष सहस्रों का एक वर्ष शतसहस्र (एक लाख वर्ष ) होता है ।
इसके बाद वर्षों की अमुक-अमुक संख्या को लेकर शास्त्रों में इस प्रकार से संज्ञाओं का उल्लेख किया गया है । अनुयोगद्वारसूत्र के अनुसार नाम और क्रम इस प्रकार है
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८४ लाख वर्ष का एक पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वांग का एक पूर्व, चौरासी लाख पूर्व का एक त्रुटितांग, चौरासी लाख त्रुटितांग का एक त्रुटित, चौरासी लाख त्रुटित का एक अडडांग, चौरासी लाख अडडांग का एक अडड होता है । इसी प्रकार पहले की राशि को ८४ लाख से गुणा करने पर उत्तरोत्तर बनने
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ज्योतिष्करंडक गाथा ८, ९, १० । भगवती सूत्र श. ६ उद्देश ७ में भी इसी प्रकार का उल्लेख है । एक मुहूर्त में कितने श्वासोच्छ्वास होते हैं, उसके लिए संकेत है
तिणि सहस्सा सत्त सयाई तेवत्तरिय ऊसासा । एस मुहुत्तो दिट्ठो सव्येहि अनंतपाणीहि ||
अर्थात् ३७७३ उच्छ्वास का एक मुहूर्त होता है, ऐसा अनन्त ज्ञानियों ने कहा है ।
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