________________
( ५३ )
गाथा १६१, १६२
४४१-४४३ आयुचतुष्क की उत्कृष्ट प्रदेश सत्ता के स्वामी गाथा १६३
४४३-४४४ वैक्रियषट्क की उत्कृष्ट प्रदेश सत्ता के स्वामी गाथा १६४
४४४-४४५ मनुष्य द्विक, वज्रऋषभनाराचसंहनन की उत्कृष्ट प्रदेश सत्ता के स्वामी
४४६ गाथा १६५
४४५---४४६ सम्यक्त्व सापेक्ष पंचेन्द्रियजाति आदि बारह शुभ ध्रुवबंधिनी प्रकृतियों की उत्कृष्ट प्रदेश सत्ता का स्वामित्व
१४६ गाथा १६६
४४६-४४८ तीर्थकरनाम, आहारकसप्तक की उत्कृष्ट प्रदेश
सत्ता का स्वामित्व गाथा १६७
एकेन्द्रिय जाति आदि तिर्यंच प्रायोग्य प्रकृतियों की उत्कृष्ट प्रदेश सत्ता का स्वामित्व
४४८ गाथा १६८ सामान्य से जघन्य प्रदेश सत्ता स्वामित्व
४४४ गाथा १६६, १७०
४५०-४५४ उद्वलन प्रकृतियों, संज्वलन लोभ, यशःकीति की जघन्य प्रदेश सत्ता का स्वामित्व
४५१ पूर्वोक्त से शेष प्रकृतियों की जघन्य प्रदेश सत्ता स्वामित्व
४५४
४४७
४४८-४४३
४४६-४५०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |