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________________ पंचसंग्रह : ५ पल्योपम अनाज आदि भरने के गोलाकार स्थान को पल्य कहते हैं । समय की जिस लम्बी अवधि को उस पल्य की उपमा द्वारा प्रगट किया जाये, उसे पल्योपम काल कहते हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है ३० सुतीक्ष्ण शस्त्रों द्वारा भी जो छेदाभेदा न जा सके ऐसा परम अणु (परमाणु) सब प्रमाणों का आदिभुत प्रमाण है । ऐसे अनन्त परमाणुओं के समुदाय की समिति के समागम से एक उच्छ्लक्ष्णश्लक्ष्णिका और आठ उच्छ्लक्ष्णश्लक्ष्णिका' को मिलाने से एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है । आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका का एक ऊर्ध्वरेणु, आठ ऊर्ध्वरेणु का एक त्रसरेणु, आठ त्रस रेणु का एक रथरेणु' और आठ रथरेणु का देवकुरु - उत्तरकुरु के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । देवकुरु - उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालानों का हरिवर्ष रम्यकवर्ष क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र तथा उन क्षेत्रों के मनुष्यों के आठ बालानों का हैमवत - ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । हैमवत - ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालाग्रों का पूर्व विदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । पूर्व विदेह के मनुष्यों के आठ बालानों की एक लिक्षा ( लीख ), आठ लीख की एक यूका (जूं), आठ यूका का एक यवमध्य और आठ यवमध्य का एक अंगुल होता है । 1 १ जीवसमाससूत्र में अनन्त उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका की एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका बताई है । किन्तु आगमों में अनेक स्थानों पर उसे आठ गुनी ही बताया है, इसीलिए यही क्रम रखा है । २ कहीं कहीं परमाणु, रथरेणु और त्रसरेणु ऐसा क्रम पाया जाता है । देखो ज्योतिष्करण्डक गाथा ७४ । किन्तु प्रवचनसारोद्धार के व्याख्याकार इसे असंगत मानते हैं, पृ. ४०६ उ० । ३ अंगुल के तीन भेद हैं- आत्मांगुल, उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल । आत्मांगुल --- जिस समय में जिन पुरुषों के शरीर की ऊँचाई अपने अंगुल से १०८ अंगुल प्रमाण होती है, उन पुरुषों का अंगुल आत्मांगुल कहलाता है । इस अंगुल का प्रमाण सर्वदा एक-सा नहीं रहता है, क्योंकि कालभेद से मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई घटती-बढ़ती रहती है । ( क्रमश ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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