SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 542
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८१, १८२, १८३ ४८१ इस प्रकार दो समय न्यून दो आवलिका के जितने समय उतने स्पर्धक जानना चाहिये। संज्वलन क्रोध के स्पर्धकों की तरह सज्वलन मान और माया के भी उतने ही और उसी प्रकार से स्पर्धक जानना चाहिये । बंधविच्छेद होने से बाद के समय दो समय न्यून दो आवलिका काल में बंधे हुए दलिकों की ही सत्ता होने से उतनी स्थिति का उत्कृष्ट स्पर्धक होता है। ___ प्रश्न-अबंध के प्रथम समय में प्रथम स्थिति की समयन्यून एक आवलिका और दूसरी स्थिति में दो समयन्यून दो आवलिका शेष होने से कुल तीन समयन्यून तीन आवलिका प्रमाण उत्कृष्ट स्पर्धक होना चाहिये । फिर दो समयन्यून दो आवलिका प्रमाण उत्कृष्ट स्पर्धक क्यों कहा है ? उत्तर-यह प्रश्न तभी सम्भव है, जबकि सत्ता में रही हुई तीन समयन्यून तीन आवलिका अनुक्रम से दूर होती हों । परन्तु वैसा होता नहीं है । प्रथम स्थिति में से और दूसरी स्थिति में से एक साथ ही कम होती जाती है जिससे जब प्रथम स्थिति दूर होती है तब दो समय न्यून एक आवलिका प्रमाण दूसरी स्थिति सत्ता में रहती है। जिससे दो समय न्यून दो आवलिका के समय प्रमाण ही उत्कृष्ट स्पर्धक सम्भव है, इससे अधिक का सम्भव नहीं। अब वेदों के स्पर्धकों का निर्देश करते हैं___'वेयाणवि बे फड्डा'- अर्थात् संज्वलन कषायत्रिक के समान ही पुरुषवेद, स्त्रीवेद और नपुसकवेद रूप वेदत्रिक के भी दो-दो स्पर्धक होते हैं । इसका कारण यह है कि तीनों वेदों की प्रथम स्थिति और दूसरी स्थिति इस तरह दो स्थिति हैं। जिससे प्रत्येक वेद के दो स्पर्धक होते हैं। __ अब वेदत्रिक के उक्त दो स्पर्धक होने के संक्षिप्त संकेत का सयुक्तिक विशेष कथन आगे की दो गाथाओं में करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy