________________
पंचसंग्रह: ५
गुणस्थान में जिनका अंत होता है, उन प्रकृतियों में तथा अयोगिकेवली के जिनकी सत्ता होती है उन उदयवती प्रकृतियों में अधिक होता है । इस प्रकार से उदयवती प्रकृतियों में एक स्पर्धक अधिक होने के कारण को स्पष्ट करने के बाद अब अनुदयवती प्रकृतियों के स्पर्धक उदयवती प्रकृतियों के स्पर्धकों से एक कम होने के कारण को स्पष्ट करते हैं ।
४७०
जिस समय उदयवती प्रकृतियों का द्विचरम उपान्त्य - अंतिम से पूर्व के स्थितिस्थान का स्व-स्वरूप से अनुभव करते हुए क्षय होता है, उस समय अनुदयवती प्रकृतियों के चरम स्थितिस्थान का क्षय होता है | क्योंकि उदयवती प्रकृतियों के चरम समय में अनुदयवती प्रकृतियों के दलिक स्तिबुकसंक्रम द्वारा संक्रमित हो जाते हैं, जिससे उदयवती प्रकृतियों के द्विचरम समय में ही अनुदयवती प्रकृतियों का क्षय होता है । इसलिये चरम समय में अनुदयवती प्रकृतियों का दलिक स्वरूपसत्ता से नहीं होता है | जिससे उस चरम समय सम्बन्धी एक स्पर्धक से न्यून उन अनुदयवती प्रकृतियों के स्पर्धक होते हैं । इस कथन का सारांश यह है
चरमस्थितिघात के चरम प्रक्षेप से आरम्भ कर सम्पूर्ण स्थिति का जो स्पर्धक उदयवती प्रकृतियों में होता है, वह अनुदयवती में भी होता है, लेकिन उदयवती से अनुदयवती में एक स्पर्धक कम होता है । क्योंकि उदयवती प्रकृतियों का चरम समय में स्वस्वरूप से दलिक अनुभव होता है, जिसमे उनका चरम समयाश्रित स्पर्धक होता है, परन्तु अनुदयवती प्रकृतियों का उदयवती प्रकृतियों में स्तिबुकसंक्रम द्वारा संक्रमण हो जाने से चरम समय में उनके दलिक स्वस्वरूप से अनुभव नहीं होते हैं, जिससे चरमसमयाश्रित एक स्पर्धक उनका नहीं होता है । इसी कारण उस एक स्पर्धक से हीन अनुदयवती प्रकृतियों के स्पर्धा क होते हैं ।
इस प्रकार से क्षीणमोह और अयोगिकेवली गुणस्थानसम्बन्धी उदयवती और अनुदयवती प्रकृतियों के स्पर्धकों विषयक स्पष्टीकरण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org