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पंचसंग्रह : ५.
'आउस्स सव्वेवि साइ अधुवा' अर्थात् चारों आयु की अध्र वसत्ता होने से आयुकर्म के उत्कृष्ट,अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य ये सभी चारों विकल्प सादि, अध्र व जानना चाहिये।
इस प्रकार से मूल कर्मों की सादि-अनादि प्ररूपणा करने के पश्चात् अब उत्तर प्रकृतियों सम्बन्धी सादि आदि भंगों का विचार करते हैं। प्रदेशसत्कर्मापेक्षा उत्तर प्रकृतियों को सांदि-अनादि प्ररूपणा
सुभधुवबंधितसाईपणिदि चउरंसरिसभ सायाणं । संजलण स्साससुभखगइ पुपराघायण क्कोसं ।।१५४।। चउहा धुवसंतीणं अणजससंजलणलोभवज्जाणं । तिविहमजहण्ण चउहा इमाण छण्हं दुहाणुत्तं ॥१५५।।
शब्दार्थ-सुभधुवबंधि-ध्र वबंधिनी शुभ प्रकृतियां, तसाइ-त्रसादि दस, पणिदि-पंचेन्द्रिय जाति, चउरस-समचतुरस्रसंस्थान, रिसम-वज्रऋषभनाराचसंहनन, सायाणं-सातावेदनीय की, संजलण-संज्वलनचतुष्क, उस्सास
-उच्छ्वास, सुभखगइ-शुभ विहायोगति, पु-पुरुषवेद, पराघाय--पराघात, अणुक्कोसं-अनुत्कृष्ट ।
चउहा-चार प्रकार की, धुवसंतीण-ध्र वसत्ता वाली प्रकृतियों की, अणअनन्तानुबंधि, जस-यशःकोति, संजलणलोभवज्जाणं-संज्वलन लोभ वजित, तिविहं-तीन प्रकार की, अजहण्ण-अजघन्य, चउहा-चार प्रकार की, इमाण--इन्हीं, छह-छह प्रकृतियों की, दुहाणुत-- अनुक्त विकल्प दो प्रकार
गाथार्थ-ध्र वबंधिनी शुभ प्रकृतियों, त्रसादि दस, पंचेन्द्रिय जाति, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रऋषभनाराचसंहनन, सातावेदनीय, संज्वलनचतुष्क, उच्छवास, शुभ विहायोगति, पुरुषवेद और पराघात की अनुष्कृष्ट प्रदेशसत्ता चार प्रकार की है तथा अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क, यशःकीर्ति और संज्वलन लोभ वर्जित ध्रुव
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