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________________ ४२८ पंचसंग्रह : ५ पारगामी, उत्कृष्ट लब्धिसम्पन्न यानि श्रुतज्ञान की उत्कृष्ट लब्धि में वर्तमान चौदह पूर्वघर के होती है। सारांश वह हुआ कि इन मतिज्ञानावरण आदि चार प्रकृतियों की जघन्य अनुभागसत्ता के स्वामी उत्कृष्ट श्रुतलब्धि सम्पन्न चौदह पूर्वधारी हैं। तथा 'परिमोहिस्सोहिदुगे' परमावधिज्ञान से युक्त जीव के अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण की जघन्य अनुभाग की सत्ता होती है । अर्थात् अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण की जघन्य अनुभागसत्ता का स्वामी परमावधिलब्धिसम्पन्न जीव है । तथाविपुलमतिमनपर्यायज्ञानी मनपर्यायज्ञानावरण की जघन्य अनुभागसत्ता का स्वामी है - 'मणनाणे विपुलनाणिस्स' । उक्त मतिज्ञानावरणादि प्रकृतियों की जघन्य अनुभागसत्ता के स्वामी उत्कृष्ट श्रुतज्ञानादि लब्धिसम्पन्न जीवों के होने का कारण यह है कि इनके उन उन प्रकृतियों का अधिक अनुभाग (रस) क्षय होता है | जिससे उक्त लब्धिसम्पन्न जीव उन उन प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग के स्वामी बताये हैं । इस प्रकार से अनुभागसत्ता के स्वामित्व को बतलाने के बाद अब अनुभागसत्ता के भेदों की प्ररूपणा करते हैं । अनुभागसत्ता के भेद अणुभागट्ठाणाई तिहा कमा ताणऽसंखगुणियाणि । उव्वट्टोवट्टणाउ अणुभागघायाओ ॥१५२॥ बंधा W शब्दार्थ - अणुभागट्ठाणाई - अनुभागस्थान, तिहा— तीन प्रकार, कमा – क्रमशः, ताण -वे, असंखगुणियाणि - असंख्यातगुणे, बंधा - बंध, उब्वट्टो वट्टणा - उद्वर्तना, अपवर्तना करण से, अणुभागधायाओ - अनुभागघात से । गाथार्थ - बंध, उद्वर्तना- अपवर्तना करण और अनुभागघात से उत्पन्न होने के कारण अनुभागस्थान तीन प्रकार के हैं और वे क्रमशः असंख्यप्त-असंख्यातगुणे हैं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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