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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १५१
४२७ जो जघन्य अनुभागसंक्रम के स्वामी हैं, उनमें की कुछ एक प्रकृतियों की जघन्य अनुभागसत्ता के स्वामी भी उन्हीं को जानना चाहिए। परन्तु कुछ प्रकृतियों के सम्बन्ध में जो विशेष है वह इस प्रकार जानना चाहिए___ सम्यक्त्वमोहनीय, स्त्री, पुरुष, नपुंसक रूप तीन वेद तथा क्षीणमोहगुणस्थान में क्षय होने वाली ज्ञानावरणपंचक, अंतरायपंचक और दर्शनावरणषट्क और संज्वलन लोभ, कुल मिलाकर इन इक्कीस प्रकृतियों की जघन्य अनुभागसत्ता के स्वामी उन-उन प्रकृतियों के क्षय के समय वर्तमानन क्षपक जीव जानना चाहिए अर्थात् जिस समय वह प्रकृति सत्ता में से नष्ट हो उस समय उस प्रकृति की जघन्य अनुभागसत्ता जानना चाहिए। जिसका विशेष स्पष्टीकरण इस प्रकार है
मइसुयचक्खुअचक्खुण सुयसम्मत्तर स जेलद्धिस्स । परमोहिस्सोहिदुगे मणनाणे विपुलनाणिस्स ॥१५१॥
शब्दार्थ-मइसुयचक्खुअचक्खण-मतिज्ञानावरण, श्रु तज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण की, सुयसम्मतस्स-श्रु तसम्पन्न, जेठ्ठलद्धिस्सउत्कृष्ट लब्धि वाले, परिमोहिस्स-परमावधिज्ञानी के, ओहिदुर्ग-अवधिद्विक आवरण की, मणनाणे-मनपर्यायज्ञानावरण की, विपुलनाणिस्स-विपुलमति मनपर्यायज्ञानी के
गाथार्थ- उत्कृष्ट लब्धि वाले श्रुतसम्पन्न के मतिज्ञाना'वरण, श्रु तज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण और अचक्षुदर्शनावरण की तथा परमावधिज्ञानी के अवधिद्विक-आवरण की और विपुलमति मनपर्यायज्ञानी के मनपर्यायज्ञानावरण की जघन्य अनुभागसत्ता होती है। विशेषार्थ-'मइसुय' इत्यादि अर्थात मतिज्ञानावरण, श्रु तज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण इन चार प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की सत्ता 'सुयसम्मत्तस्स जेट्ठलद्धिस्स' सम्पूर्ण श्रुत के
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