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________________ बंधविधि-प्ररूप गा अधिकार : गाथा १४७ ४२१ गाथार्थ-हास्यादि षट्क, पुरुषवेद और संज्वलन क्रोधादि तीन इस प्रकार ये दस प्रकृतियां बंध और उदय का विच्छेद होने के बाद संक्रांत होतो हैं, जिससे इन दस प्रकृतियों के चरम संक्रम को जघन्य स्थितिसत्ता जानना चाहिये । विशेषार्थ-पूर्व गाथा में जो 'दसण्ह पुण संक्रमो चरिमो' पद दिया था, उसी का यहाँ स्पष्टीकरण किया है हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा रूप हास्यादि षट्क, पुरुषवेद और संज्वलन क्रोध, मान, माया इन दस प्रकृतियों का जो चरम संक्रम होता है, वही उनकी जघन्य स्थितिसत्ता जानना चाहिए। इसका कारण है कि इन दस प्रकृतियों के बंध और उदय का विच्छेद होने के बाद अन्य प्रकृतियों में संक्रम होने के द्वारा क्षय होता है। इसीलिए जितनी स्थिति का चरम संक्रम होता है, उतनी स्थिति इन प्रकृतियों की जघन्य स्थितिसत्ता जानना चाहिए। __इस प्रकार एक एक प्रकृति की जघन्य स्थितिसत्ता बतलाने के बाद अब सामान्य से सभी प्रकृतियों की जघन्य स्थितिसत्ता के स्वामियों का निर्देश करते हैं अनन्तानुबंधिचतुष्क और दर्शनत्रिक की जघन्य स्थितिसत्ता के स्वामी अविरतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयतगुणस्थान तक के जीव हैं। नरक, तिर्यच और देव आयु की जघन्य स्थितिसत्ता के स्वामी अपने-अपने भव के चरम समय में वर्तमान नारक, तिथंच और देव हैं। ___ अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और प्रत्याख्यानावरणचतुष्क इन आठ कषाय, स्त्याद्धित्रिक, नौवें गुणस्थान में क्षय होने वाली नामकर्म की तेरह प्रकृति, नव नो कषाय और संज्वलनत्रिक रूप छत्तीस प्रकृतियों की जघन्य स्थितिसत्ता का स्वामी अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थानवर्ती जीव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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