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________________ ४१४ पंचसंग्रह : ५ स्थिति उसे उत्कृष्ट सत्ता जानना चाहिये । उदयवती और अनुदयवती प्रकृतियों की सत्ता में जो एक समय का अन्तर है, उसका कारण यह है कि उदयवती प्रकृति का उदयप्राप्त दलिक स्तिबुकसंक्रम द्वारा अन्यत्र संक्रान्त नहीं होता है और अनुदयवती का संक्रांत होता है। - इसके साथ ही उदयबंधोत्कृष्ट, अनुदयबंधोत्कृष्ट प्रकृतियों के लिए यह भी समझना चाहिये कि उदयबंधोत्कृष्ट प्रकृतियों में जिन प्रकृतियों का उदय हो तभी उनका उत्कृष्ट स्थितिबंध होता है यह नही समझना चाहिये, किन्तु उदय हो तब भी होता है, यह समझना चाहिये । क्योंकि उनमें की कितनी ही प्रकृतियों का उदय न हो तब भी उत्कृष्ट स्थितिबंध हो सकता है । जैसे कि क्रोध का उदय वाला मान का उत्कृष्ट स्थितिबंध कर सकता है । वैसे ही प्रशस्त विहायोगति का उदय वाला अप्रशस्त विहायोगति का कोई अन्य संस्थान का उदय वाला हुंडकसंस्थान का उत्कृष्ट स्थितिबंध कर सकता है । किन्तु अनुदयबंधोत्कृष्ट प्रकृतियों में से उनका उदय न हो तभी उत्कृष्ट स्थितिबंध होता है । इस प्रकार बंधदयोत्कृष्ट, अनुदयबंधोत्कृष्ट प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता का कथन जानना चाहिए। अब उदयसंक्रमोत्कृष्ट और अनुदयसंक्रमोत्कृष्ट प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिसत्ता का निर्देश करते हैं उदयसंकम उक्कोसाण आगमो सालिगो भवे जेट्ठो । संतं अणुदयसंकमको साणं तु समऊणो ।। १४५॥ शब्दार्थ - उदय संकम उक्कोसाण – उदयसंक्रमोत्कृष्ट प्रकृतियों की, आगमो -आगम, संक्रम, सालिगो - आवलिका सहित, मवे― होता है, जेट्ठीउत्कृष्ट स्थितिसत्ता, संतं-सत्ता, अणुदयसं कम उश्कोसाणं - अनुदय संक्रमो - त्कृष्ट प्रकृतियों की, तु — और, समऊणो- एक समय न्यून | For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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