SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचसंग्रह : ५ 'सासायणंत नियमा' सासादनगुणस्थान पर्यन्त 'पढमा' प्रथम अनन्तानुबंधिकषायों की सत्ता नियम से होती है । इसका कारण यह है कि मिथ्यादृष्टि और सासादन गुणस्थानवर्ती जीव अनन्तानुबंधिकषायों का अवश्य बंध करते हैं । जिससे इन दो गुणस्थानों में अवश्य सत्ता होती है और उसके बाद के मिश्रगुणस्थान से लेकर अप्रमत्तगुणस्थान तक के पांच गुणस्थानों में इनकी सत्ता भजनीय है - 'पंचसु भज्जा' । क्योंकि यदि उवलना की हो तो सत्ता नहीं होती है, अन्यथा होती है । इसी कारण अनन्तानुबंधिकषायों की सत्ता मिश्र आदि गुणस्थानों में भजनीय कही है । तथा मज्झिल्लकसाया ता जा अणियट्टिखवगसंखेया । गिद्धितिगं ॥ १३६॥ भागा ता संखेया ठिइखंडा जाव ४०० खवगक्षपक के, शब्दार्थ - मज्झल्लट्ठकसाया - मध्यम आठ कषायों, ता - तब तक, जा- जब तक, अणियट्टि - अनिवृत्तिबादरगुणस्थान, संख्या - संख्यात, भाग-भाग, ता – तब तक संख्या - संख्यात, ठिइखंडा - स्थितिखंड, जाव—तक, गिद्धितिगं - स्त्यानद्वित्रिक | . गाथार्थ - मध्यम आठ कषायों की सत्ता तब तक जानना चाहिए जब तक क्षपक के अनिवृत्तिबादर गुणस्थान के संख्यात भाग होते हैं अर्थात् क्षपक के अनिवृत्तिबादरगुणस्थान के संख्यात भाग पर्यन्त मध्यम आठ कषायों की और उसके बाद संख्यात भाग पर्यन्त स्त्यानद्धित्रिक की सत्ता होती है । विशेषार्थ - अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण क्रोधादि चतुष्क को मध्यम आठ कषाय कहते हैं । इन आठ कषायों की क्षपक के अनिवृत्तिबादरसंप रायगुणस्थान के संख्याता भाग पर्यन्त सत्ता होती है, उसके बाद उनका क्षय होने से सत्ता नहीं रहती है । किन्तु उपशमश्रेणि की अपेक्षा तो उपशांत मोहगुणस्थान पर्यन्त सत्ता जानना चाहिए । तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy