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पंचसंग्रह : ५ मिथ्यात्व की सत्ता नहीं होती है, किन्तु उपशमन किया हो तो उपशम सम्यक्त्वी के सत्ता होती है। क्षीणमोह आदि गुणस्थानों में मिथ्यात्व की सत्ता का अवश्य अभाव है।
सारांश यह है कि सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं-उपशम सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि । उनमें से उपशम सम्यक्त्वी के तो मिथ्यात्व को सत्ता होती है, लेकिन क्षायिक सम्यग्दृष्टि के सत्ता नहीं पाई जाती है । इसीलिए चौथे अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान से लेकर उपशांतमोहगुणस्थान पर्यन्त आठ गुणस्थानों में मिथ्यात्व की सत्ता को भजनीय बताया है। ___'सासायणमि नियमा सम्म' अर्थात् दूसरे सासादनगुणस्थान में सम्यक्त्वमोहनीय की सत्ता अवश्य होती है । क्योंकि सासादनगुणस्थान में मोहनीय की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता है और सम्यक्त्व मोहनीयकर्म की प्रकृति है। अतएव दूसरे गुणस्थान में सम्यक्त्वमोहनीय की सत्ता अवश्य होती है और 'भज्जं दससु' यानि सासादन को छोड़कर मिथ्यात्व से लेकर उपशांतमोहगुणस्थान तक के दस गुणस्थानों में भजना से होती है । जो इस प्रकार जानना चाहिए
मिथ्यात्वगुणस्थान में अभव्य के और अभी तक भी जिसने सम्यक्त्व प्राप्त नहीं किया ऐसे भव्य के सम्यक्त्वमोहनीय की सत्ता होती ही नहीं है और उपशम सम्यक्त्व से गिरकर आए हुए भव्य के जब तक उद्वलना नहीं करे तब तक सत्ता होती है तथा ऊपर के गुणस्थान से गिरकर मिश्रगुणस्थान प्राप्त करे तो उसके मिश्रगुणस्थान में सम्यक्त्वमोहनीय की अवश्य सत्ता होती है, लेकिन पहले गुणस्थान में सम्यक्त्वमोहनोय की उद्वलना कर मिश्रगुणस्थान प्राप्त करे तो उसे सत्ता नहीं होती है। चौथे से ग्यारहवें गुणस्थान तक क्षायिक सम्यक्त्वी के सत्ता नहीं होती है, किन्तु उपशम, क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि वाले के होती है। इसी कारण दस गुणस्थानों में सम्यक्त्वमोहनीय की सत्ता भजना से कही है। बारहवें आदि गुणस्थानों में तो सम्यक्त्वमोहनीय का सत्ता होती ही नहीं है । तथा
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