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________________ ३७८ पंचसंग्रह : ५ ज्ञानावरण और चक्षुदर्शनावरण आदि तीन दर्शनावरण रूप कुल सात प्रकृतियों का जघन्य प्रदेशोदय करता है। प्रथम समय में जघन्य प्रदेशोदय होने का कारण यह है कि प्रायः प्रभूत दलिकों की उद्वर्तना की हुई होने से पहले समय में अल्पप्रमाण में दलिक होते हैं और उत्कृष्ट संक्लेश युक्त जीव के प्रदेश-उदीरणा अल्प एवं अनुभाग-उदीरणा अधिक होती है। क्योंकि ऐसा सामान्य नियम है कि अनुभाग की आधक प्रमाण में उदीरणा होने पर प्रदेशों की अल्प प्रमाण में और प्रदेशों की अधिक प्रमाण में उदीरणा होने पर अनुभाग की अल्प प्रमाण में उदीरणा होती है। इसीलिये प्रस्तुत में अतिसंक्लिष्ट परिणामी एकेन्द्रिय के अधिक प्रमाण में अनुभाग की उदीरणा होने से प्रदेशों को उदीरणा अल्पप्रमाण में होती है, जिससे उदोरणा से भी अधिक दलिक उदय में प्राप्त नहीं होते हैं। अतएव मिथ्यात्व को प्राप्त हुए अतिसंक्लिष्ट परिणामी एकेन्द्रिय के पहले समय में जघन्य प्रदेशोदय होना बतलाया है। द्वितीय आदि समय में न बताने का कारण यह है कि दूसरे समयों में योग अधिक होने से पहले समय से उनमें कुछ अधिक प्रदेशों की उदीरणा करके भोगता है। जिससे द्वितीय आदि समयों में जघन्य प्रदेशोदय सम्भव नहीं है । इसीलिये पहला समय ग्रहण किया है । तथा कुव्वइ ओहिदुगस्स उ देवत्तं संजमाउ संपत्तो। मिच्छक्कोसुक्कट्टिय आवलिगंते पएसुदयं ॥१२१॥ शब्दार्थ-कुम्वइ-करता है, ओहिदुगस्स-अवधि द्विक का, उ-और, देवत्त-देवपने, संजमाउ-संयम से, संपत्तो-प्राप्त, मिच्छुक्कोसुक्कट्टिय-मिथ्यात्व में जाकर उत्कृष्ट स्थिति की उदीरणा करके, आवलिगतेआवलिका के अन्त में, पएसुदयं-प्रदेशोदय । गाथार्थ-संयम से अवधिद्विक को उत्पन्न कर देवपने को प्राप्त हुआ जीव मिथ्यात्व में जाकर उसकी उत्कृष्ट स्थिति बांधे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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