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पंचसंग्रह : ५ के नामानुसार क्रमशः क्षीणमोह, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली कहलाती हैं।
अब इन गुणश्रेणियों में दलरचना होने और समय के प्रमाण को बतलाते हैं
'असंखगुणिय गुणसेढिदलिय जहक्कमसो' अर्थात् इन सम्यक्त्वादि सम्बन्धी ग्यारह गुणश्रेणियों में होने वाली दलरचना अनुक्रम से असंख्यातगुण-असंख्यातगुण होती है। जो इस प्रकार जानना चाहिये कि सम्यक्त्वोत्पत्ति की गुणश्रेणि में होने वाली दलरचना परिणामों की मन्दता के कारण अल्पप्रमाण में होती है। उसकी अपेक्षा परिणामों के अनन्तगुण विशुद्ध होने से देशविरतिनिमित्तक गुणश्रेणि में असंख्यातगुण दल रचना होती है। उससे भी सर्वविरतिनिमित्तक गुणश्रेणि में असंख्यातगुणदलरचना होती है। इस प्रकार आगे-आगे की गुणश्रेणि में उत्तरोत्तर अनन्तगुणी विशुद्धि होने से असंख्यातगुण - असंख्यातगुण दलरचना अयोगिकेवलीनिमित्तक गुणश्रोणि पर्यन्त जानना चाहिये।
लेकिन 'कालो उ संखंसो' अर्थात् सम्यक्त्वोत्पत्तिनिमित्सक आदि गुणश्रेणियों का काल उत्तरोत्तर अनुक्रम से संख्यातगुणहोन संख्यातगुणहीन जानना चाहिये । जिसका तात्पर्य यह है कि सम्यक्त्व के उत्पन्न होने पर होने वाली गुणश्रेणि का काल संख्यातगुणहीन है। उससे भी देशविरतिनिमित्तक गुणश्रोणि का काल संख्यातगुणहीन है। इसी प्रकार से उत्तर-उत्तर की गुणश्रेणियों के कालप्रमाण को संख्यातगुणहीन-संख्यातगुणहीन अयोगिकेवलीनिमित्तक गुणश्रेणि पर्यन्त समझना चाहिये।
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