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- करता है, पएसुक्कोसं -- उत्कृष्ट प्रदेशबंध को, जहन्नयं -- जघन्य, उससे, वच्चासे - विपरीत स्थिति में ।
पंचसंग्रह : ५
गाथार्थ - अल्पतर प्रकृतियों का बंध होने पर उत्कृष्ट योग वाला संज्ञी पर्याप्तक जीव उत्कृष्ट प्रदेशबंध करता है और उससे विपरीत स्थिति में जघन्य प्रदेशबंध होता है ।
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तस्स
विशेषार्थ - गाथा में अध्रुवबंधिनी प्रकृतियों के उत्कृष्ट व सामान्य से सभी बंध प्रकृतियों के जघन्य प्रदेशबंधस्वामित्व के नियम का निर्देश किया है । उसमें से पहले अध्रुवबंधिनी प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंधस्वामित्व का प्रतिपादन करते हैं
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'अप्पतरपइबंधे' अर्थात् जब मूल प्रकृतियों का अत्यल्प बंध हो रहा हो, तब उत्कृष्ट योग में वर्तमान पर्याप्त संज्ञी जीव के एक या दो समय अध्रुवबंधिनी प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है । अर्थात् किसी भी विवक्षित प्रकृति के उत्कृष्ट प्रदेशबंध के विचार के प्रसंग में जब मूलकर्म एवं उसकी स्वजातीय प्रकृतियां यथासंभव कम से कम गंधती हों और योगस्थान उत्कृष्ट हो तब पर्याप्त संज्ञी जीव को उस प्रकृति का उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है । जो इस प्रकार समझना चाहिये
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सातावेदनीय, उच्चगोत्र और यशः कीर्ति इन तीन प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी छह मूलकर्मों का बंधक, उत्कृष्ट योगस्थान में वर्तमान सूक्ष्मसंप रायगुणस्थानवर्ती जीव है। क्योंकि आयु और मोहनीय का भाग एवं यशःकीर्ति में अबध्यमान स्वजातीय प्रकृतियों के भाग का भी प्रवेश होता है ।
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पुरुषवेद के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का अनिवृत्तिबादरसंप रायगुणस्थानवर्ती उत्कृष्ट योगी जीव स्वामी है । क्योंकि मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधि आदि प्रकृतियों के भाग का भी प्रवेश हो जाता है ।
देवगतिप्रायोग्य तीर्थंकरनाम के साथ उनतीस प्रकृतियों को
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