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पंचसंग्रह : ५
उत्तर - तथास्वभाव मे सासादन गुणस्थानवर्ती जीव के उत्कृष्ट योगस्थान संभव नहीं होने से वह आयुकर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी नहीं है और उसके उत्कृष्ट योगस्थान संभव नहीं होने का कारण यह है कि यदि सासादनगुणस्थानवर्ती जीव के उत्कृष्ट योग हो तो अनन्तानुबंध का उत्कृष्ट प्रदेशबंध सासादन में ही घट सकता है । क्योंकि उस समय मिथ्यात्व के भाग की भी उसको प्राप्ति होती है और यदि ऐसा हो तो अनन्तानुबंधि का अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध सादिआदि चार विकल्प रूप से घट सकता है । जो इस प्रकार है
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अनन्तानुबंधि का उत्कृष्ट प्रदेशबंध उक्त न्याय से सासादनगुणस्थान में होता है, अन्यत्र नहीं होता है । उस सासादनगुणस्थान से च्युत होने पर जब मिथ्यात्व में आये तब अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है, इसलिये सादि है । जिन्होंने सासादनगुणस्थान प्राप्त नहीं किया, उनको अनादि, अभव्यों को ध्रुव और भव्यों को अध्रुव । इस प्रकार से अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध के चार विकल्प घट सकते हैं । परन्तु यह कथन शास्त्रकार को इष्ट नहीं है । क्योंकि यह पहले कहा जा चुका है कि अनन्तानुबंध का अनुत्कृष्ट प्रदेशबंध सादि और अध्रुव होता है । इस लिये सासादन गुणस्थान में उत्कृष्ट योग असंभव होने से सासादनगुणस्थानवर्ती जीव आयुकर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी नहीं है । मिश्रगुणस्थान में तो आयु का बंध ही नहीं होने से उसका भी निषेध किया है ।
मोहनीय कर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामी सात कर्मों के बंधक मिध्यादृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसयत, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिबादरसंपराय इन सात गुणस्थानवर्ती जीव हैं। क्योंकि इन सबके उत्कृष्ट योगस्थान और मोहनीय के बंध का सद्भाव पाया जाता है ।
१. आचार्य शिविशमंसूरि ने भी इसी प्रकार शतक में आयु और मोहनीय कर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबंधक गुणस्थानों का उल्लेख किया हैआउक्कस्स पदेसस्प पंच मोहस्त सत्त ठाणाणि । --→
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