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बंधविधि प्ररूपणा अधिकार : गाया दर्द, ६०
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दो-दो प्रकार के हैं - मूल प्रकृति संबन्धी, उत्तर प्रकृति संबन्धी । इनमें से पहले मूल और उसके बाद उत्तर प्रकृति विषयक उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामित्व का विचार करते हैं । मूल प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशबंध-स्वामित्व
जाण जहिं बंधतो उक्कोसो ताण तत्थेव ॥ ६०॥ शब्दार्थ जाण -- - जिनका, जहि-जहाँ, बंधतो—बंध का अंत होता है, उक्कोसो - उत्कृष्ट प्रदेशबंध, ताण -- उनका, तत्थेव - वहाँ हो ।
गाथार्थ - जिन प्रकृतियों के बंध का जहाँ अंत होता है, वहाँ उन प्रकृतियों का ( प्रायः ) उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है ।
विशेषार्थ - ग्रन्थकार आचार्य ने उत्कृष्ट प्रदेशबंध स्वामित्व के लिये संक्षेप में जिस करणसूत्र का संकेत किया है, उसका विस्तार से स्पष्टीकरण इस प्रकार है
'जाण जहिं बंधतो' अर्थात् जिन प्रकृतियों का जिस स्थान मेंगुणस्थान में बंधविच्छेद होता है, उन प्रकृतियों का प्रायः वहीं उत्कृष्ट प्रदेशबंध होना समझना चाहिये । तात्पर्य यह हुआ कि जिस गुणस्थान में जिस प्रकृति का बंधविच्छेद होता है, उस स्थान को प्राप्त हुए और उत्कृष्ट योगस्थान में वर्तमान जीव उस उस प्रकृति के उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामी हैं ।
उक्त सूत्रात्मक कथन का मूल प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंधस्वामित्व के प्रसग में विस्तृत विवेचन इस प्रकार है
आयुकर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबंध के स्वामी मिथ्यादृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत इन पांच गुणस्थानों में वर्तमान उत्कृष्ट योगसम्पन्न जीव हैं। क्योंकि इन सभी गुणस्थान वालों के उत्कृष्ट योगस्थान और आयु का बंध संभव है । प्रश्न --- सासादनगुणस्थानवर्ती जीव आयु के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी क्यों नहीं है ?
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