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पंचसंग्रह : ५
क्रम
प्रकृतियां
उत्कृष्ट अनुभागबंध , जघन्य अनुभागबंध के स्वामी
के स्वामी
३४ | उद्योत
उपशम सम्यक्त्व प्राप्त अति संक्लिष्ट नारक करने वाला मिथ्यात्वी तथा सहस्रारांत देव चरम समयवर्ती सप्तम पृथ्वी का नारक
३५ | तीर्थंकरनाम
अपूर्वकरणवर्ती क्षपक | मिथ्यात्व तथा नरकास्वबंधविच्छेद के | भिमुख, क्षायोपशसमय
मिक सम्यक्त्व चरम
समयवर्ती मनुष्य सूक्ष्मसंपराय चरम. [ परावर्तमान मध्यम समयवर्ती क्षपक परिणामी
३६ / यशःकीति
३७ / उच्चगोत्र
सूक्ष्मसंपराय चरम- | परावर्तमान मध्यम समयवर्ती क्षपक परिणामी मिथ्यादृष्टि
३८ | नीचगोत्र
अति संक्लिष्ट मिथ्या- | उपशम सम्यक्त्व प्राप्त दृष्टि पर्याप्त संज्ञी । | करने वाला मिथ्यात्वी
चरम समयवर्ती सप्तम पृथ्वी का नारक
अब अनुभागबंध के अध्यवसायों और अनुभाग के अविभाग प्रतिच्छेदों के प्रमाण का निरूपण करने के लिये अल्पबहुत्व का विचार करते हैं। अल्पबहुत्व प्ररूपणा
सेढिअसंखेजसो जोगदाणा तओ असंखेज्जा। पयडीभेआ तत्तो ठिइभेया होंति तत्तोवि ।।७५॥ ठिइबंधज्झवसाया तत्तो अणुभागबंधठाणाणि । तत्तो कम्मपएसाणंतगुणा तो रसच्छेया ॥७६॥
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