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पंचसंग्रह : ५
क्रम
प्रकृतियां
उत्कृष्ट अनुभागबंध
के स्वामी
जघन्य अनुभागबंध
के स्वामी
१८ देवद्विक, वैक्रियद्विक
क्षपक अपूर्वकरण में अति संक्लिष्ट मिथ्यास्वबंधविच्छेद समय- | त्वी पर्याप्त मनुष्य, वर्ती
पंचेन्द्रिय तिर्यच
१६ | मनुष्य द्विक
अतिविशुद्ध सम्यग्दृष्टि देव
परावर्तमान मध्यम परिणामी मिथ्यात्वी
२० । तिर्यंचद्विक
अति संक्लिष्ट मिथ्यात्वी नारक तथा सहस्रारांत देव
उपशमसम्यक्त्व प्राप्त करने वाला मिथ्यात्व चरमसमयवर्ती सप्तमपृथ्वी नारक
२१ । नरकद्विक
अति संक्लिष्ट मिथ्या- | तत्प्रायोग्य विशुद्ध . त्वी पर्याप्त मनुष्य, मिथ्य त्वी पर्याप्त तियंच
मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच
२२ आहारकद्विक
क्षपक अपूर्वकरण में | प्रमत्ताभिमुख अप्रमबंधविच्छेद के समय । त यति
२३ | औदारिकद्विक
अतिविशुद्ध सम्यग्दृष्टि देव
अति संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि देव, नारक
२४ ! तेजस, कार्मण, शुभ | क्षपक अपूर्वकरणवर्ती | अति संक्लिष्ट चारों
वर्ण चतुष्क, पंचेन्द्रिय- J स्वबंधविच्छेद के | गति के मिथ्यादृष्टि जाति, पराघात, उच्छ्- | समय वास, अगुरुतघु, निर्माण, सचतुष्क
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