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पंचसंग्रह : ५ उक्त उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिबंध के स्वामित्व को निम्नलिखित प्रारूप द्वारा सरलता से समझा जा सकता है
उत्कृष्ट स्थितिबध । जघन्य स्थितिबंध प्रकृतियों के नाम ।
के स्वामी
के स्वामी ज्ञानावरणचपंचक, अति संक्लिष्ट परि-क्षपक सूक्ष्मसंपराय अन्तरायपंक, दर्शना- | णामी संज्ञी पर्याप्त ! चरमसमयवर्ती वरणचतुष्क
मिथ्यादृष्टि
K
२ / निद्रापंचक
विशुद्ध पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय
३ | मिथ्यात्व और आदि
की बारह कषाय
४ | संज्वलनचतुष्क
क्षपक, स्वबंध चरम समयवर्ती
५ | हास्य-रति
तत्प्रायोग्य' संक्लिष्ट | विशुद्ध पर्याप्त बादर संज्ञी मिथ्यादृष्टि एकेन्द्रिय
६ | अरति, शोक, भय, | अतिसं क्लिष्ट परिजुगुप्सा, नपुसकवेद ।
(णामी संज्ञी मिथ्यादृष्टि
७ | स्त्रीवेद
तत्प्रायोग्य सक्लिष्ट परिणामी संज्ञी मिथ्या दृष्टि
८ | पुरुषवेद
क्षपक स्वबंध चरमसमयवर्ती
| सातावेदनीय
१० असातावेदनीय
अतिसंक्लिष्ट परिणामी विशृद्ध बादर पर्याप्त संज्ञी मिथ्यादृष्टि एकेन्द्रिय
११ | देवायु
तत्प्रायोग्य विशुद्ध | तत्प्रायोन्य संक्लिष्ट
अप्रमत्ताभिमुख प्रमत्त | पर्याप्त संज्ञी असंज्ञी For-यति & Personal use / मिथ्यादृष्टि ..
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