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________________ बधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६१ । जिन प्रकृतियों के जघन्य या उत्कृष्ट स्थितिबंध पहले गुणस्थान में होते हैं, उनके अजघन्य और अनुत्कृष्ट स्थितिबंध में, उन दोनों के परावर्तित क्रम से होने के कारण सादि, सांत यही दो भंग घटित होते हैं तथा जिन प्रकृतियों के जघन्य अथवा उत्कृष्ट बंध ऊपर के गुणस्थानों में होते हों उनके अजघन्य या अनुत्कृष्ट पर चार भंग घटित होते हैं। क्योंकि ऊपर के गुणस्थान में आरोहण नहीं किये हुए, आरोहण नहीं करने वाले और आरोहण करके गिरने वाले जीव होते हैं। जिससे भंगों की योजना तदनुसार करना चाहिए। शेष अध्र वबंधिनी प्रकृतियों के चारों विकल्प उनके अध्र वबंधिनी होने से सादि और अध्र व जानना चाहिये । अब पूर्वोक्त गाथा में कहे गये जघन्यादि विकल्पों को सामान्य बुद्धि वाले शिष्यों को सरलता से समझाने के लिये विशेषता के साथ स्पष्ट करते हैं अट्ठारसण्ह खवगो बायरएगिदि सेसधुवियाणं । पज्जो कुणइ जहन्नं साई अधुवो अओ एसो ॥६१॥ शब्दार्थ-अट्ठारसह-अठारह प्रकृतियों का, खवगो-क्षपक, बायरएगिदि-बादर एकेन्द्रिय, सेसधुवियाणं-शेष ध्र वबंधिनी प्रकृतियों का, पज्जो-पर्याप्त. कुणइ-करता है, जहन्न-जघन्य, साई अधुवो-सादि, अध्र व, अओ-इस कारण, एसो-इनका। गाथार्थ-ज्ञानावरणपंचक आदि अठारह प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध क्षपक और शेष ध्र वबंधिनी प्रकृतियों का पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय जीव करता है। इस कारण वे सादि और अध्र व विकल्प वाली हैं। विशेषार्थ-गाथा में ज्ञानावरणपंचक आदि अठारह प्रकृतियों एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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