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पंचसंग्रह : ५ द्वीन्द्रिय के असंख्यातगुणे हैं तथा उससे आगे त्रीन्द्रिय आदि के संख्यातगुणे हैं।
विशेषार्थ-गाथा में स्थितिस्थानों का विचार किया गया है कि जीवों के कितने स्थितिस्थान होते हैं। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
एक समय में एक साथ जितनी स्थिति का बंध हो, उसे स्थितिस्थान कहते हैं । जघन्य स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति के चरम समय पर्यन्त समय-समय की वृद्धि करते-करते जितने समय हों उतने स्थितिस्थान होते हैं। यथा--कोई जीव जघन्य स्थिति का बंध करे, वह पहला स्थितिस्थान, समयाधिक जघन्य स्थिति का बंध दूसरा स्थितिस्थान, दो समयाधिक जघन्य स्थिति का बंध तीसरा स्थितिस्थान, इस प्रकार एक-एक समय बढ़ाते हुए यावन् उत्कृष्ट स्थिति का बंध वह अन्तिम स्थितिस्थान ।1
१ स्थितिस्थान के दो प्रकार हैं-बद्धस्थितिस्थान और सत्तास्थितिस्थान ।
एक समय में एक साथ जितनी स्थिति का बंध हो, वे बद्ध स्थितिस्थान हैं। जैसे कोई जघन्य स्थिति का बंध करे वह पहला स्थितिस्थान, कोई समयाधिक जघन्य स्थिति का बंध करे वह दूसरा स्थितिस्थान । इसी प्रकार कोई तीन, चार, संख्यात, असंख्यात समयाधिक स्थिति का बंध करे यावत् कोई उत्कृष्ट स्थिति का बंध करे वह चरम स्थितिस्थान । यह तो बद्धस्थिति स्थानों की चर्चा हुई।
अब दूसरे सत्तागत स्थितिस्थानों का विचार करते हैं । एक समय में जघन्य, मध्यम या उत्कृष्ट जितनी स्थिति बंधी हो, उसके भाग में आई वर्गणाओं के अबाधाकाल को छोड़कर जितने समयों में रचना हो, वे सब सत्तागत स्थितिस्थान कहलाते हैं । सत्तागत स्थितिस्थान अर्थात् एक समय में एक साथ कालभेद से जितने समयों के बंधे हुए और जितनी वर्गणाओं के फल का अनुभव हो।
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