SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५१ १६१ कर्मों में अबाधा उस बध्यमान कर्म की सत्ता की अंग है । इसी कारण बध्यमान आयु के उदय के प्रथम समय से लेकर ही दलिकों की निषेकविधि कही है और बध्यमान आयु की अबाधा परभव सम्बन्धी होने का कारण यह है बध्यमान आयु की अबाधा अनुभूयमान आयु के अधीन है, किन्तु बध्यमान आयु के अधीन नहीं है । क्योंकि आयु का ऐसा स्वभाव है। जिससे जब तक अनुभूयमान भव को आयु उदय में वर्तमान हो तब तक बध्यमान भव की आयु सर्वथा प्रदेशोदय या रसोदय से उदय में नहीं आती है, परन्तु अनुभूयमान भव की आयु पूर्ण होने के बाद ही उदय में आती है तथा किसी समय अनुभूयमान भव की आयु का तीसरा भाग शेष हो तब, कभी नौवां भाग शेष हो तव, कभी सत्ताईसवां भाग शेष हो तब और किसी समय अन्तमुहूर्त शेष हो तब परभव की दीर्घ स्थिति वाली भी आयु का बंध होता है। जिससे दीर्घस्थिति वाली परभवायु की भी भुज्यमान आयु के शेष भाग के अनुसार जितना भाग शेष हो उतनी-उतनी अबाधा प्रवर्तित होती है, जो परभव सम्बन्धी कहलाती है, बध्यमान आयु सम्बन्धी नहीं। अर्थात् ज्यमान भव में जब परभव की आयु बंधी तो उस भुज्यमान भव तक उस अबाधा का सम्बन्ध रहता है, बध्यमान आयु से उसका कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहता है । भवान्तर में जाते ही उस बध्यमान आयु का उदय प्रारम्भ हो जाता है। इसीलिए बध्यमान आयु के उदय के प्रथम समय से ही दल रचना होने का निर्देश किया है। __इस प्रकार से अनन्तरोपनिधा द्वारा निषेकरचना का विचार जानना चाहिये । अब परम्परोपनिधा से निषेकरचना का विचार करते हैं। परम्परोपनिधा से निषेकरचना का विचार पल्लासंखिय भागं गंतु अद्धद्धयं दलिय ॥५१॥ १ तुलना कीजिय-पल्लासंखियभागं गंतु दुगणूणमेव मुक्कोसा। __ --कर्मप्रकृति, बंधनकरण गा. ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy