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________________ १८० पंचसंग्रह : ५ दो मास एग अद्ध अंतमुहत्तं च कोहपुव्वाणं । सेसाणुक्कोसाओ मिच्छत्तठिईए जं लद्ध ॥४८॥ शब्दार्थ-दो मास-दो माह, एग-एक, अद्ध-अर्धमास, अंतमुहुत्तअंतर्मुहूर्त, च-और, कोहपुष्वाणं-(संज्वलन) क्रोधपूर्वक शेष कषायों की, सेसाण-शेष प्रकृतियों की, उक्कोसाओ-उत्कृष्ट स्थिति में, मिच्छत्तठिईएमिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने पर, जं-जो, लद्ध-लब्ध प्राप्त हो। __ गाथार्थ-- संज्वलन क्रोध पूर्वक चारों कषायों की अनुक्रम से दो माह, एक माह, अर्धमास और अंतर्मुहूर्त प्रमाण जघन्य स्थिति है और शेष प्रकृतियों की उन उनकी उत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति से भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो उतनीउतनी जघन्य स्थिति जानना चाहिए। विशेषार्थ-गाथा में अनुक्रम से चारों संज्वलन कषायों की जघन्य स्थिति बतलाने के अनन्तर अवशिष्ट प्रकृतियों की जघन्य स्थिति जानने के सामान्य नियम का निर्देशन किया है। ___ संज्वलन क्रोधादि में से संज्वलन क्रोध की जघन्य स्थिति दो मास, संज्वलन मान की एक मास, संज्वलन माया की अर्धमास और संज्वलन लोभ की अन्तमुहूर्त प्रमाण जघन्य स्थिति है । इसका तात्पर्य यह है कि नौवें अनिवृत्तिबादरसम्परायगुणस्थान में जहाँ-जहाँ इनका बंधविच्छेद होता है, वहाँ बंधविच्छेद के समय क्षपकश्रेणि में संज्वलन क्रोध की दो मास, संज्वलन मान की एक मास, संज्वलन माया की अर्धमास और संज्वलन लोभ की अन्तमुहर्त प्रमाण जघन्य स्थिति बंधती है। इससे कम स्थिति का बंध अन्य किसी भी गुणस्थान में नहीं होता है । इसीलिये यह दो मास आदि संज्वलन क्रोधादि की जघन्य स्थिति बताई है। प्रत्येक का अन्तमुहूर्त अबाधाकाल है और अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचनाकाल है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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