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________________ बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४१ १६६ रूप उत्कृष्ट अबाधा जानना चाहिये ।1 अब परभव की आयु बांधने वाले शेष जीवों के जितनी अबाधा होती है, उसे बतलाते हैं । परभवायु बंधक शेष जीवों को अबाधा का प्रमाण निरुवक्कमाण छमासा इगिविगलाणं भविट्टिईतंसो । पलियासंखेज्जंसं जुगधम्मीणं वयंतन्ने ॥४१॥ शब्दार्थ-निरुवक्कमाण-निरुपक्रम आयु वालों के, छमासा-छह मास, इगिविगलाणं-एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों के, भवट्ठिईतंसो-भवस्थिति का १ आयु की ऐसी परिभाषा है कि पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले और उससे एक समय भी अधिक यावत् पल्योपम सागरोपम आदि की आयु वाले असंख्य वर्ष की आयु वाले कहलाते हैं । अपनी भुज्यमान आयु के दो भाग जाने के पश्चात् तीसरे भाग के आदि में-प्रारम्भ में आयु बांध सकते हैं, यह कथन संख्यात वर्ष की आयु वालों की अपेक्षा घटित होता है । असंख्यात वर्ष की आयु वालों की अपेक्षा नहीं । असंख्यात वर्ष की आयु वाले तो अपनी आयु छह माह शेष रहे तब परभव की आयु का बंध करते हैं। मतान्तर से युगलिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग शेष रहे तब और नारक अन्तमुहूर्त की आयु बाकी हो तब परभव की आयु बांधते हैं। पूर्व में जो आयु के उत्कृष्ट स्थितिबंध में जघन्य अबाधा होने का संकेत किया है, वह नरकायु की उत्कृष्ट स्थिति बांधने पर सम्भव है । जैसे कि अन्तमुहूर्त की आयु वाला तन्दुलमत्स्य तेतीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट नरकायु का बंध करता है। किन्तु देवायु की अपेक्षा सम्भव नहीं है। क्योंकि अन्तर्मुहूर्त की आयु वाला अनुष्य अनुत्तर विमान की तेतीस सागरोपम प्रमाण आयु नहीं बांध सकता है। अनुत्तर विमान की आयु-प्रमत्तअप्रमत्त संयत गुणस्थान में बंधती है और वह गुणस्थान लगभग नौ वर्ष की उम्र वाले को ही प्राप्त होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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