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________________ १६४ पंचसंग्रह : ५ __ आयुकर्म की स्थिति के साथ उसके अबाधाकाल को न जोड़ने का चौथा कारण यह है कि आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति में भी जघन्य अबाधा और जघन्य स्थिति में भी उत्कृष्ट अबाधा हो सकती है। क्योंकि पहले यह बता चुके हैं कि उसका अबाधाकाल स्थिति के प्रतिभाग के अनुसार नहीं होता है। अत: आयुकर्म की अबाधा के चार विकल्प होते हैं १. उत्कृष्ट स्थितिबंध में उत्कृष्ट अबाधा । २. उत्कृष्ट स्थितिबंध में जघन्य अबाधा । ३. जघन्य स्थितिबंध में उत्कृष्ट अबाधा। ४. जघन्य स्थितबंध में जघन्य अबाधा । इन चार विकल्पों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है-जब कोई मनुष्य अपनी पूर्वकोटि की आयु में तीसरा भाग शेष रहने पर तेतीस सागरोपम की आयु बांधता है तब उत्कृष्ट स्थितिबंध में उत्कृष्ट अबाधा होती है और यदि अन्तर्मुहूर्त प्रमाण शेष रहने पर तेतीस सागरोपम की स्थिति बांधता है, तो उत्कृष्ट स्थिति में जघन्य अबाधा होती है तथा जब कोई मनुष्य एक पूर्वकोटि का तीसरा भाग शेष रहते परभव की जघन्य स्थिति बांधता है जो अन्तर्मुहूर्त प्रमाण हो सकती है, तब जघन्य स्थिति में उत्कृष्ट अबाधा और यदि अन्तमुहूर्त प्रमाण स्थिति शेष रहने पर परभव की अन्तमुहूर्त प्रमाण स्थिति बांधता है तो जघन्य स्थिति में जघन्य अबाधा होती है। इस प्रकार आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति में भी जघन्य अबाधा और जघन्य स्थिति में भी उत्कृष्ट अबाधा हो सकती है। यही कारण है कि आयुकर्म की स्थिति में उसका अबाधाकाल सम्मिलित नहीं किया जाता है।1 उत्कृष्ट स्थितिबंध का अबाधाकाल निकालने का जो सूत्र बताया है कि एक कोडाकोडी सागरोपम पर सौ वर्ष की अबाधा होती है, उस सूत्र के अनुरूप आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति कोडाकोडी सागरोपमों में नहीं होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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