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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३६
१५६ की अठारह कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है, अठारह सौ वर्ष का अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन शेष निषेकरचानाकाल है। तथा
'चत्ता कसायाणं' अर्थात् अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोधादि चतुष्कों रूप सोलह कषायों की उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोडाकोडी सागरोपम है, चार हजार वर्ष अबाधाकाल और अबाधाकाल से हीन निषेकरचनाकाल है । तथा
पुहासरईउच्चे सुभखगतिथिराइछक्कदेवदुगे । दस सेसाणं वीसा एवइयाबाह वाससया ॥३६॥ शब्दार्थ -पुहासरईउच्चे-पुरुषवेद, हास्य, रति, उच्चगोत्र, सुभखगतिशुभ विहायोगति, थिराइछक्क-स्थिरादिषट्क, देवदुर्ग-देवद्विक, दस-दस कोडाकोडी सागरोपम, सेसाणं-शेष प्रकृतियों की, वीसा-वीम कोडाकोडी सागरोपम, एवइयाबाह-इतना अबात्राकाल, वाससया-सौ वर्ष ।
___ गाथार्थ-पुरुषवेद, हास्य, रति, उच्चगोत्र, शुभ विहायोगति, स्थिरषट्क और देवद्विक की दस कोडाकोडी सागरोपम की और शेष प्रकृतियों की बीस कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है। जितने कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति हो उतने ही सौ वर्ष का अबाधाकाल जानना चाहिए।
पूर्व में संस्थानों की स्थिति का वर्णन कर दिये जाने के बाद पुनः विशेष निर्णय के लिए गाथा में पृथक् से निर्देश किया है
सुहुमतिवामणविगले ठारस । कर्मप्रकृति में भी वामन को पांचवां संस्थान मानकर अठारह कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है।
दिगम्बर कार्मग्रन्थिकों ने भी वामन को पांचवां संस्थान माना है।
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