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पंचसंग्रह : ५
पर एक सौ तीस का और दोनों का बंध करने पर एक सौ इकतीस का सत्तास्थान होता है तथा आयु रहित एक सौ तीस की सत्तावाला पंचेन्द्रिय वैक्रियषट्क का बंध करे तब एक सौ छत्तीस का और आयु का बंध करने पर एक सौ सैंतीस का सत्तास्थान होता है तथा एक सौ छत्तीस की सत्ता वाला देवद्विक अथवा नरकद्विक का बंध करे तब एक सौ अड़तीस का और वही आयु का बंध करे तब एक सौ उनतालीस का सत्तास्थान होता है तथा आयुविहीन एक सौ अड़तीस की सत्ता वाले के जब उपशमसम्यक्त्व प्राप्त हो तब सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय की सत्ता प्राप्त हो तब एक सौ चालीस का सत्तास्थान होता है और एक सौ चालीस की सत्ता वाला सम्यग्दृष्टि तीर्थंकरनाम का बंध करे तब एक सौ इकतालीस का तथा उसी एक सौ चालीस की सत्ता वाले सम्यक्त्वी के तीर्थंकर के बिना आहारकचतुष्क का बंध हो तब एक सौ चवालीस का, तीर्थंकर और आहारकचतुष्क दोनों का बंध होने पर एक सौ पैंतालीस का और देवायु का बंध होने पर एक सौ छियालीस का सत्तास्थान होता है । इस तरह १२८, १२, १३०, १३१, १३६, १३७, १३८, १३६, १४०, १४१, १४४, १४५, १४६ प्रकृतिक सत्तास्थान भूयस्कार रूप से प्राप्त होते हैं । तथा
क्षायिक सम्यग्दृष्टि के ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणनवक, वेदनीयद्विक, मोहनीय इक्कीस, आयु एक, नाम अठासी, गोत्रद्विक और अन्तरायपंचक, इस प्रकार एक सौ तेतीस प्रकृतियों की सत्ता होती है । उसे तीर्थंकर का बंध होने पर एक सौ चौंतीस का, आयुबंध में एक सौ पैंतीस का, तीर्थंकर और आयु के बंध बिना आहारकचतुष्क का बंध होने पर एक सौ सैंतीस का, तीर्थंकर के बंध में एक सौ अड़तोस का और आयु का बंध होने पर एक सौ उनतालीस का सत्तास्थान होता है । इस प्रकार क्षायिक सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा पांच सत्तास्थान भूयस्कार रूप में प्राप्त होते हैं । उनमें से आदि के दो लेना चाहिए, किन्तु शेष समान संख्या वाले होने से ग्रहण नहीं किये हैं । तथा
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