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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
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स्थान अमुक काल तक उदय में प्रवर्तमान रहते हैं । अवक्तव्योदय सर्वथा घटित नहीं होता है। क्योंक दर्शनावरणकर्म की सभी प्रकृ-तियों का उदयविच्छेद क्षीणमोहगुणस्थान में होता है, किन्तु वहाँ से पतन नहीं होने के कारण पुनः उसकी किसी भी प्रकृति का उदय नहीं होता है। ... मोहनीय-मोहनीयकर्म के नौ उदयस्थान हैं—एकप्रकृतिक, दोप्रकृतिक, चारप्रकृतिक, पांचप्रकृतिक, छहप्रकृतिक, सातप्रकृतिक, आठप्रकृतिक, नौप्रकृतिक और दसप्रकृतिक । इन सभी उदयस्थानों का आगे सप्ततिकाप्रकरण में विस्तार से विचार किया जा रहा है। लेकिन प्रासंगिक होने के कारण एवं सरलता से समझने ने लिये संक्षेप में यहाँ उनका निर्देश करते हैं
जहाँ केवल चार संज्वलन कषायों में से किसी एक प्रकृति का -उदय रहता है, वहाँ एकप्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसमें तीन वेदों में से किसी एक को मिलाने पर दोप्रकृतिक, इसमें हास्य-रतियुगल अथवा अरति-शोकयुगल में से किसी एक युगल को मिलाने पर चारप्रकृतिक, इसमें भयप्रकृति को मिला देने पर पांचप्रकृतिक, इसमें जुगुप्सा प्रकृति को मिला देने पर छहप्रकृतिक, इसमें प्रत्याख्यानावरणकषाय की किसी एक प्रकृति को मिला देने पर सातप्रकृतिक, इसमें अप्रत्याख्यानावरणकषाय की एक प्रकृति को मिला देने पर आठप्रकृतिक, इसमें अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क में से किसी एक प्रकृति को मिला देने पर नौप्रकृतिक और इसमें मिथ्यात्व को मिला देने पर दसप्रकृतिक उदयस्थान होता है । ___ यह कथन सामान्य से किया गया है। इसलिये इन उदयस्थानों में संभव विकल्पों को न बताकर सूचनामात्र की है। अब इन उदय१ दिगम्बर परम्परा में भी इसी प्रकार मोहनीयकर्म के नौ उदयस्थान
बतलाये हैं । गो. कर्मकाण्ड गा. ४७५ ।
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