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पंचसंग्रह : ५ करने पर साठ का और दोनों को कम करने पर उनसठ का बंधरूप तेरहवां और चौदहवां अल्पतर होता है।
१५-१८-सातवें गुणस्थान में ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणषट्क, एक वेदनीय, नौ मोहनीय, एक आयु, अन्तरायपंचक और तीर्थंकरनाम एवं आहारकद्विक सहित नामकर्म की इकतीस प्रकृतियां, इस प्रकार अट्ठावन प्रकृतियों का बंध होने पर पन्द्रहवां और तीर्थंकरनाम के बंध बिना सत्तावन प्रकृतियों का बंध करने पर सोलहवां, तीर्थंकरनाम का बंध और आहारकद्विक को नहीं बांधकर छप्पन प्रकृतियों का बंध होने पर सत्रहवां तथा तीनों के बिना पचपन का बंध होने पर अठारहवां अल्पतर जानना चाहिये।
१९-२०-आठवें गुणस्थान में ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, एक वेदनीय, नौ मोहनीय, एक गोत्र, अन्तरायपंचक और नामकर्म की तीर्थंकरनाम के साथ देवगति-प्रायोग्य उनतीस इस प्रकार चौपन प्रकृतियों का बंध होने पर उन्नीसवां एवं तीर्थंकरनाम के बिना वेपन प्रकृतियों का बंध होने पर बीसवां अल्पतर होता है।
२१-आठवें गुणस्थान के सातवें भाग में ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, एक वेदनीय, नौ मोहनीय, एक गोत्र, अन्तरायपंचक और नामकर्म की यशःकीर्ति रूप एक, इस प्रकार छब्बीस प्रकृतियों का बंध होने पर इक्कीसवां अल्पतर होता है।
२२-२८-नौवें गुणस्थान में ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणचतुष्क, एक वेदनीय, पांच मोहनीय, एक नाम, एक गोत्र और अन्तरायपंचक इस प्रकार बाईस प्रकृतियों का बंध होने पर बाईसवां अल्पतर, पुरुषवेद बिना इक्कीस का बंध होने पर तेईसवां अल्पतर, संज्वलन क्रोध बिना बीस का बंध होने पर चौबीसवां अल्पतर, मान के बिना उन्नीस प्रकृतियों का बंध होने पर पच्चीसवां अल्पतर, माया के बिना अठारह प्रकृतियों का बंध होने पर छब्बीसवां अल्पतर, लोभ के बिना दसवें
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