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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
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बंधस्थानों में भूयस्कार आदि जानना चाहिए। अब सामान्यतः सभी उत्तरप्रकृतियों के बंधस्थानों में भूयस्कार आदि का निर्देश करने के लिए पहले उनके बंधस्थानों का निरूपण करते हैं। समस्त उत्तरप्रकृतियों के बंधस्थान
इगसयरेगुत्तर जा दुवीस छव्वीस तह तिपन्नाई। जा चोवत्तरि बावट्ठिरहिय बंधाओ गुणतीसं ॥१८॥
शब्दार्थ-इगसयरेगुत्तर-एक, सत्रह और एक-एक अधिक, जापर्यन्त, तक, दुवीस-बाईस, छब्बीस-छब्बीस, तह-तथा, तिपत्राई-त्रेपन आदि, जा-तक. चोवत्तरि- चौहत्तर, बावविरहिय-बासठ से रहित, बंधाओ-बंध के, गुणतीसं-उनतीस ।
गाथार्थ-एक, सत्रह और उससे एक-एक अधिक करते हुए बाईस तक के पांच तथा छब्बीस और वेपन से एक-एक अधिक करते हुए और बासठ को छोड़कर चौहत्तर तक के इक्कीस, इस प्रकार सभी प्रकृतियों के उनतीस बंधस्थान होते हैं।
विशेषार्थ-गाथा में सामान्य से सभी कर्मों की उत्तरप्रकृतियों के बंधस्थान बतलाये हैं कि वे उनतीस होते हैं। उन उनतीस बंधस्थानों में समाविष्ट प्रकृतियों की संख्या इस प्रकार है___ एक, सत्रह और उसके बाद एक-एक अधिक करते हुए बाईस तक पांच अर्थात् अठारह, उन्नीस, बीस इक्कीस, बाईस तथा छब्बीस और उसके बाद वेपन से प्रारम्भ कर एक-एक अधिक बढ़ाते हुए और बीच में बासठ का स्थान छोड़कर चौहत्तर तक इक्कीस बंधस्थान
१ किसी भी प्रकार से किसी भी प्रकृति के कम-बढ़ न होने से बासठप्रकृतिक
बंधस्थान सर्वया सम्भव नहीं होने से उसमें भूयस्कार आदि बंधों का विचार नहीं किया जाता है।
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