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पंचसंग्रह : ५
को घटाकर स्थावर, पर्याप्त, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, उच्छ वास, पराघात और उद्योत-आतप में से किसी एक को मिलाने पर एकेन्द्रिय पर्याप्तप्रायोग्य छब्बीस का स्थान होता है।
नौ ध्रुवबंधिनी, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर-अस्थिर में से एक, शुभ-अशुभ में से एक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति और अयश:कीति में से एक, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियशरीर, प्रथम संस्थान, देवानुपूर्वी, वैक्रिय-अंगोपांग, सुस्वर, प्रशस्तविहायोगति, उच्छ वास और पराघात इन प्रकृतिरूप देवगति-प्रायोग्य अट्ठाईस का बंधस्थान होता है तथा नौ ध्रु वबंधिनी, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति, नरकगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियशरीर, हुण्डकसंस्थान, नरकानुपूर्वी, वैक्रिय-अंगोपांग, दुःस्वर, अप्रशस्तविहायोगति, उच्छ वास और पराघात इन प्रकृतिरूप नरकगतिप्रायोग्य अट्ठाईस का बंधस्थान होता है।
नौ ध्र वबंधिनी, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर या अस्थिर, शुभ या अशुभ, दुर्भग, अनादेय, यशःकीति या अयशःकोति, तिर्यंचगति, द्वीन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, हुण्डकसंस्थान, तिर्यंचानुपूर्वी, सेवार्तसंहनन, औदारिक-अंगोपांग, दुःस्वर, अप्रशस्तविहायोगति, उच्छ वास, पराघात इन प्रकृतिरूप द्वीन्द्रिय पर्याप्तप्रायोग्य उनतीस का बंधस्थान होता है । इसमें द्वीन्द्रिय के स्थान पर त्रीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रिय के स्थान पर चतुरिन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रिय के स्थान पर पंचेन्द्रियजाति के मिलाने से क्रमशः त्रीन्द्रिय पर्याप्त, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, पंचेन्द्रिय पर्याप्त प्रायोग्य उनतीसप्रकृतिक स्थान होता है। परन्तु पंचेन्द्रिय पर्याप्त प्रायोग्य उनतीसप्रकृतिक स्थान की इतनी विशेषता है कि सुभग और दुर्भग, आदेय और अनादेय, सुस्वर और दुःस्वर, प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगति, इन युगलों में से एक-एक प्रकृति बंधती है तथा छह संस्थानों और छह संहननों में से किसी भी एक संस्थान और
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