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पंचसंग्रहः ५ सत्तास्थानों में भी अवक्तव्य घटित नहीं होता है। क्योंकि सर्वथा समस्त कर्मों की सत्ता का नाश होने के पश्चात पुन: उनकी सत्ता होती ही नहीं है। इसी कारण सत्तास्थानों में अवक्तव्य प्रकार नहीं माना जाता है।
इस प्रकार मूलकर्मों के बंध, उदय, उदीरणा और सत्ता स्थानों में भूयस्कार आदि का विधान जानना चाहिये। ____ अब इन्हीं भूयस्कार आदि को अनुक्रम से उत्तरप्रकृतियों के बंध आदि स्थानों में बतलाते हैं । परन्तु उत्तरप्रकृतियों के बंधादि स्थानों को जाने बिना उनके भूयस्कार आदि का विवेचन किया जाना संभव नहीं है । अतः विवेचन की सरलता के लिये प्रत्येक कर्म की उत्तरप्रकृतियों के बंधादि स्थानों का कथन करते हैं और उसके बाद उनमें भूयस्कार आदि विकल्पों का निर्देश करेंगे। ____ कर्मों की बंध, उदय, उदीरणा और सत्ता इन चार अवस्थाओं में बंध का क्रम पहला होने से अब प्रत्येक कर्म की उत्तरप्रकृतियों के बंधस्थानों का निर्देश करते हैं। उत्तरप्रकृतियों के बंधस्थान और उनमें भूयस्कार आदि
बंधट्ठाणा तिदसट्ठ दसणावरणमोहनामाणं । सेसाणेगमवट्ठियबंधो सव्वत्थ ठाणासमो ॥१५॥
शब्दार्थ-बंधट्ठाणा-बंधस्थान, तिदसट्ठ-तीन, दस और आठ, दंसणावरणमोहनामाणं-दर्शनावरण, मोहनीय, नाम के, सेसाणेगं-शेष का एकएक, अवठ्ठियबंधो-अवस्थित बंध, सम्वत्थ-सर्वत्र, ठाण समो-बंधस्थानों के समान ।
गाथार्थ-दर्शनावरण, मोहनीय और नाम कर्म के अनुक्रम से तीन, दस और आठ बंधस्थान होते हैं और शेष कर्मों का एक-एक बंधस्थान है तथा अवस्थितबंध सर्वत्र बंधस्थानों के समान (बराबर) होता है।
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