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बंधविधि-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४
सत्ता-सत्तास्थान तीन हैं-१. आठप्रकृतिक २. सातप्रकृतिक ३. चारप्रकृतिक। इनमें से ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त आठों कर्मों की सत्ता होती है। मोह के बिना सात की क्षीणमोहगुणस्थान में और अन्तिम दो गुणस्थानों अर्थात् सयोगि और अयोगि केवलि गुणस्थान में चार अघाति कर्मों की सत्ता होती है। इसमें एक भी भूयस्कार घटित नहीं होता है। इसका कारण यह है कि सात की सत्ता वाला होकर आठ की सत्ता वाला अथवा चार की सत्ता वाला होकर सात की सत्ता वाला होता ही नहीं है। इसी कारण सत्तास्थानों में एक भी भूयस्कार नहीं होता है क्योंकि सात आदि की सत्ता वाला क्षीणमोहगुणस्थानवर्ती होता है और उसका प्रतिपात नहीं होता है।
इन सत्तास्थानों में अल्पतर दो घटित होते हैं। क्योंकि आठ के सत्तास्थान से सात के और सात के सत्तास्थान से चार के सत्तास्थान में जाता है। इसीलिए दो अल्पतर घटित होते हैं । तथा__ अवस्थित आठ, सात और चार प्रकृतिक ये तीन होते हैं । इनमें से आठ की सत्ता का काल अभव्य के अनादि-अनन्त और भव्य के अनादि-सान्त है। सात की सत्ता क्षीणमोहगुणस्थान में होने और उसका काल अन्तमुहूर्त होने से, उसकी सत्ता का भी काल अन्तर्मुहर्त है तथा चार की सत्ता अन्तिम सयोगिकेवलि और अयोगिकेवलि इन दो गुणस्थानों में होने से और सयोगिकेवलि गुणस्थान का काल देशोनपूर्वकोटि होने से चार की सत्ता का उत्कृष्टकाल देशोनपूर्वकोटि है।
१ गो० कर्मकाण्ड में भी तीन सत्तास्थान माने हैं
संतोत्ति अट्ठ सत्ता खीणे सत्त व होति सत्ताणि । जोगिम्मि अजोगिम्मि य चत्तारि हवंति सत्ताणि ॥४५७।। उपशांतकष यगुणस्थान पर्यन्त आठों प्रकृतियों की सत्ता है। क्षीणमोहनीयगुणस्थान में मोहनीय के बिना सात कर्मों की और सयोगि, अयोगि
के वलि इन दोनों गुणस्थानों में चार अघाति कर्मों की सत्ता है। Jain Education International
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