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________________ ४२ पंचसंग्रह : ५ तिक २. सात प्रकृतिक और २. चार प्रकृतिक । इनमें से आठों कर्म का उदय पहले मिथ्यात्वगुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान पर्यन्त दस गुणस्थानों में होता है। मोहनीय के बिना सात कर्मों का उदय ग्यारहवें और बारहवें उपशांतमोह, क्षीणमोह गुणस्थान में तथा चार घाति कर्मों के बिना तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में चार अघाति कर्मों का उदय होता है 11 यहाँ एक भूयस्कार होता है। क्योंकि उपशांतमोहगुणस्थान में सात का वेदक होकर वहाँ से पतित होने पर पुनः आठ का वेदक होता है। चार का वेदक होकर सात का या आठ कर्म का वेदक नहीं होता है। क्योंकि चार का वेदक सयोगि केवलि अवस्था में होता है, किन्तु वहाँ से प्रतिपात होता नहीं जिससे यहाँ एक ही भूयस्कार घटित होता है । ___ अल्पतर दो होते हैं। वे इस प्रकार जानना चाहिए कि आठ के उदयस्थान से ग्यारहवें अथवा बारहवें गुणस्थान में जाने पर सात का उदयस्थान प्राप्त होता है और सात के उदयस्थान से जब तेरहवें गुणस्थान में जाता है तब चार का उदयस्थान होता है । इस प्रकार दो अल्पतर घटित होते हैं। ____ अवस्थित तीन हैं। क्योंकि तीनों उदयस्थान अमुक काल तक अवस्थित होते हैं। इनमें से आठ का उदयस्थान अभव्य को अनादिअनन्त है, भव्य को अनादि-सांत और ग्यारहवें गुणस्थान से पतित को देशोन अर्धपुद्गलपरावर्तन पर्यन्त होता है। सात का उदय अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त और चार का उदय देशोन पूर्वकोटि पर्यन्त होता है। १ दिगम्बर साहित्य में भी इसी प्रकार तीन उदयस्थान और उनके स्वामी बतलाये है(क) अठ्ठदओ सुहुमोति य मोहेण विणा हु संतखीणेसु । घादिदाराण चउक्कस्सुदओ केवली दुगे णियमा ।। -गो० कर्मकाण्ड, गाथा ४५४ (ख) दि० पंचसंग्रह शतक अधिकार, गा० २२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001902
Book TitlePanchsangraha Part 05
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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