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बंधधिधि-प्ररूपणा अधिकार : गाया १४ काल अन्तर्मुहूर्त है । क्योंकि सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्त है और छह का बंध सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में ही होता है । एक के बंध का काल देशोन पूर्बकोटि है । क्योंकि सयोगिकेवलि गुणस्थान का काल उतना है। ___ अब अवक्तव्यबंध का विचार प्रारम्भ करते हैं कि मूल कर्मों में अवक्तव्यबंध सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि समस्त मूल कर्मप्रकृतियों का अबंधक होकर कोई पुनः कर्मों का बंध नहीं करता है । सभी मूल प्रकृतियों का अबंधक अयोगिकेवली गुणस्थान में होता है और वहाँ से पतन नहीं होने से अवक्तव्य बंध घटित नहीं होता है।
इस प्रकार बंध में भूयस्कार आदि बंधों को जानना चाहिये । अब बंध की तरह उदय, उदीरणा और सत्ता स्थानों में भी भूयस्कार आदि का कथन करते हैं। उदय आदि में भूयस्कार आदि निरूपण
भूओगारप्पयरगअव्वत्त अवट्ठिया जहा बंधे । उदओदीरणसंतेसु वावि जहसंभवं नेया ॥१४॥
शब्दार्थ-भूओगारप्पयरग-~-भूयस्कार, अल्पतर, अव्वत्त-अवक्तव्य, अवठ्ठिया - अवस्थित, जहा-जिस प्रकार से, बंधे-बंध में, उदओदीरणसंतेसु-उदय, उदीरणा, सत्ता में, वावि-भी, जहसंभवं- यथासंभव, नेया--- जानना चाहिए। __ गाथार्थ-जिस प्रकार से बंध में भूयस्कार, अल्पतर, अवस्थित
और अवक्तव्य बतलायें हैं, उसी प्रकार से उदय, उदीरणा और सत्ता में भी यथासंभव जानना चाहिये । विशेषार्थ-गाथा में बंध की तरह उदयादि में भूयस्कार आदि प्रकारों को घटित करने का निर्देश किया है। जिसका अनुक्रम से उदयादि की अपेक्षा विस्तार से स्पष्टीकरण इस प्रकार है
उदय-मूल कर्मप्रकृतियों के तीन उदयस्थान हैं-१. आठप्रकृ
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