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________________ बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११ १ कायवध । ये पूर्ववर्ती दूसरे सासादनगुणस्थान के जघन्यपदवर्ती दस बंधहेतुओं में से अनन्तानुबंधी को कम करने पर प्राप्त होते हैं । अनन्तानुबंधिकषाय को कम करने का कारण यह है कि पहले और दूसरे इन दो गुणस्थानों में ही अनन्तानुबंधी का उदय होता है तथा मिश्रदृष्टि में मरण नहीं होने से अपर्याप्त अवस्थाभावी औदारिकमिश्र, क्रियमिश्र और कार्मण ये तीन योग भी संभव नहीं होने से दस योग पाये जाते हैं । अतएव अंकस्थापना इस प्रकार समझना चाहियेइन्द्रिय- अविरति ५१ योग कषाय वेद युगल कायवध ५ ६ १० ४ ३ २ ऊपर बताई गई अंकस्थापना के अंकों का क्रमशः गुणा करने पर नौ धतुओं के ( ७२०० ) बहत्तर सौ भंग होते हैं । अब दस बंधहेतुओं के भंगों को बतलाते हैं १. पूर्वोक्त नौ हेतुओं में कायद्विक को ग्रहण करने पर दस हेतु होते हैं । छह काय के द्विकसंयोग में पन्द्रह भंग होने से कायवध के स्थान पर छह के बदले पन्द्रह रखना चाहिये और उसके बाद अनुक्रम से अंकों का गुणा करने पर (१८०००) अठारह हजार भंग होते हैं । २. अथवा भय को मिलाने से भी दस हेतु होते हैं । उनके पूर्ववत् ( ७२००) बहत्तर सौ भंग होते हैं । ३. अथवा जुगुप्सा के मिलाने से भी दस हेतु होंगे। उनके भी पूर्व - वत् ( ७२००) बहत्तर सौ भग होते हैं । १ भय, जुगुप्सा को मिलाने पर भंगों की वृद्धि नहीं होती है किन्तु कायवध को मिलाने पर भंगों की वृद्धि होती है । जैसे कार्याद्विकवध गिना गया हो तो उसके पन्द्रह भंग होते हैं । अतः पूर्वोक्त अंकस्थापना में कायवध के स्थान पर पन्द्रह का अंक रखकर गुणा करना चाहिए। इसी प्रकार जब तीन, चार, पांच या छह काय गिनी गई हों, तब उनके अनुक्रम से बीस, पन्द्रह, छह और एक संख्या कायवध के स्थान पर रखकर गुणा करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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