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________________ ५० बंधहेतु १४ १४ X X X X १५ १५ १५ १५ w w १६ १६ १६ १७ 11 " 11 11 17 " पूर्वोक्त दस, कायषट्कवध " " " 71 11 17 13 हेतु-विकल्प 33 11 कायत्रिकवध, भय, जुगुप्सा पूर्वोक्त दस, कायषट्कवध, भय 33 जुगुप्सा काय पंचकवध, भय, जुगुप्सा जुगुप्सा | २२८०० ३०४०० काय पंचकवध, भय जुगुप्सा " कायचतुष्कवध, भय, जुगुप्सा प्रत्येक विकल्प के भंग पूर्वोक्त दस, कायषट्कवध, भय, जुगुप्सा १५२० ६१२० १२० २२८०० १५२० १५२० १२० पंचसंग्रह : ४ कुल भंग ८५१२० ४२५६० १२१६० १५२० १५२० कुल भंग संख्या ३८३०४० इस प्रकार सासादनगुणस्थान के बंधहेतु - प्रकारों के कुल भंगों का जोड़ तीन लाख तेरासी हजार चालीस (३,८३,०४०) होता है । सासादनगुणस्थान के बंधहेतुओं का निर्देश करने के पश्चात् अब तीसरे मिश्रगुणस्थान के बंधहेतु और उनके भंगों का प्रतिपादन करते हैं। मिश्र गुणस्थान के बंधहेतु और उनके भंग मिश्रगुणस्थान में नौ से सोलह तक बंधहेतु होते हैं । मिश्रगुणस्थान में जघन्यपदभावी नौ बंधहेतु इस प्रकार हैं-१ वेद, १ योग, १ युगल, १ इन्द्रिय-असंयम, अप्रत्याख्यानावरणादि तीन क्रोधादि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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