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बंधहेतु प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११
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इस प्रकार सासादनगुणस्थान में दस बंधहेतुओं के (६,१२०) नौ हजार एक सौ बीस भंग होते हैं। इसी तरह ऊपर कहे गये अनुसार आगे भी बंधहेतुओं के भंगों को जानने के लिये अंकों का क्रमपूर्वक गुणा करना चाहिये।
अब ग्यारह बंधहेतुओं के भंगों को बतलाते हैं
१. पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में जो एक काय का वध गिना है, उसके बदले कायद्विक का वध लेने पर ग्यारह हेतु होते हैं और कायद्विक के संयोगी पन्द्रह भंग होते हैं। इसलिये काय के स्थान पर छह के बदले पन्द्रह अंक रखना चाहिये और शेष की अंकसंख्या पूर्ववत् है । अतः पूर्वोक्त क्रमानुसार अंकों का गुणा करने पर (२२,८००) बाईस हजार आठ सौ भंग होते हैं।
२. अथवा पूर्वोक्त दस हेतुओं में भय को मिलाने पर ग्यारह हेतु होते हैं । लेकिन भय को मिलाने से भंगों की संख्या में वृद्धि नहीं होती, 'इसलिये पूर्ववत् (६,१२०) नौ हजार एक सौ बीस भंग होते हैं।
३. इसी प्रकार से जुगुप्सा के मिलाने पर ग्यारह हेतुओं के भी (६,१२०) इक्यानवे सौ बीस भंग होते हैं ।
इस प्रकार ग्यारह बंधहेतु तीन प्रकार से प्राप्त होते हैं और उनके भंगों का कुल योग (२२,८०० + ६.१२० +६,१२० =४१,०४०) इकतालीस हजार चालीस है। ___ ग्यारह बंधहेतुओं के भंगों का निर्देश करने के पश्चात अब बारह बंधहेतुओं के भंगों को बतलाते हैं
१. पूर्वोक्त दस बंधुहेतुओं में एक काय के बदले कायत्रिक को लेने पर बारह हेतु होते हैं। कायषट्क के त्रिकसंयोग में बीस भंग होते हैं। अतएव कायवध के स्थान पर छह के बदले बीस का अंक रखना चाहिये । तत्पश्चात् पूर्ववत् अंकों का गुणा करने पर (३०,४००) तीस हजार चार सौ भंग होते हैं ।
२. अथवा भय और कायद्विक का वध लेने पर भी बारह हेतु होते हैं। उनके (२२,८००) बाईस हजार आठ सौ भंग होते हैं ।
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