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________________ बंधहेतु प्ररूपणा अधिकार : गाथा १० अनन्तानुबंधी के विकल्पोदय का कारण अणउदयरहियमिच्छे जोगा दस कुणइ जन्न सो कालं । अणणुदओ पुण तदुवलगसम्मदिटिस्स मिच्छुदए ॥१०॥ शब्दार्थ-अणउदयरहिय-अनन्तानुबंधी के उदय से रहित, मिच्छेमिथ्याह ष्टि के, नोगा-योग, दस-दस, कुणइ -करता है, जन्-क्योंकि न-नहीं, सो-वह, कालं-मरण, अणणुदओ--अनन्तानुबंधी के उदय का अभाव, पुण–पुनः, तदुवलग-उसके उद्वलक, सम्मदिहिस्स-सम्यग्दृष्टि के, मिच्छदए-मिथ्यात्व का उदय होने पर । गाथार्थ अनन्तानुबंधी के उदय से रहित मिश्यादृष्टि के दस योग होते हैं । क्योंकि तथास्वभाव से वह मरण नहीं करता है । अनन्तानुबंधी के उदय का अभाव उसके उद्वलक सम्यग्दृष्टि को मिथ्यात्व का उदय होने पर होता है। विशेषार्थ-गाथा में अनन्तानुबंधी के उदय से रहित मिथ्यादृष्टि के दस और उदय वाले के तेरह योग होने एवं किस मिथ्यादृष्टि के अनन्तानुबंधी का उदय होता है ? के कारण को स्पष्ट किया है अनन्तानुबंधी के उदय से रहित मिथ्यादृष्टि के दस योग होने का कारण यह है कि अनन्तानुबंधी के उदय बिना का मिथ्यादृष्टि तथास्वभाव से मरण को प्राप्त नहीं होता है 'कुणइ जन्न सो कालं' और जब मरण नहीं करता है तो विग्रहगति और अपर्याप्त अवस्था में प्राप्त होने वाले कार्मण, औदारिकमिश्र और वैक्रियमिश्र, ये तीन योग संभव नहीं हो सकते हैं। इसीलिए मिथ्या दृष्टि के दस योग ही होते हैं। प्रश्न-मिथ्यादृष्टि के अनन्तानुबंधी का अनुदय कैसे संभव है ? उत्तर-अनन्तानुबंधी का अनुदय अनन्तानुबंधी की उद्वलान करने वाले सत्ता में से नाश करने वाले सम्यग्दृष्टि के मिथ्यात्वमोहनीय का उदय होने पर होता है-'तदुवलगसम्मदिहिस्स मिच्छुदए' । सारांश यह है कि जिसने अनन्तानुबंधी की उद्वलना की हो ऐसा सम्यग्दृष्टि जब मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से गिरकर मिथ्यात्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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