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________________ ४० बंधहेतु हेतुओं के विकल्प १६ पूर्वोक्तदस काय पंचकवध अनन्ता जुगुप्सा १६ भय, जुगुप्सा कायचतुष्कवध, १६ अनन्ता भय, जुगुप्सा | ११७००० १७ १७ १७ १७ १८ पूर्वोक्त दस "J पूर्वोक्त दस कायषट्कवध अनन्ता, भय जुगुप्सा भय, जुगुप्सा " काय पंचकवध अनन्ता. " 11 " 13 " "" " | विकल्पगतभंग " " Jain Education International जुगुप्सा भय, कायषट्कवध अनन्ता. भय, जुगुप्सा ४६८०० ३६००० ७८०० ७८०० ६००० ४६८०० ७८० कुल भंग संख्या पंचसंग्रह कुल भंग २६६४०० ६८४०० ७८०० ३४,७७, ६०० इस प्रकार मिथ्यात्वगुणस्थान में समस्त बंधहेतुओं के कुल भंग चौंतीस लाख सतहत्तर हजार छह सौ (३४,७७,६०० ) होते हैं । नोट - इस प्रारूप में जघन्यपदभावी बंधहेतुओं में एक कायवध तो पूर्व में ग्रहण किया हुआ है। अतः वायद्विक दि वध लिये जाने पर एक कायवध के अतिरिक्त शेष अधिक संख्या लेना चाहिये । जैसे - अठारह बंधहेतुओं में कायषट्कवध बताया है किन्तु उसमें एक कायवध का पूर्व में समावेश होने से छह के बदले कायपंचकवध, अनन्तानुबंधी, भय, जुगुप्सा इन आठ को मिलाने से अठारह हेतु होंगे । इसी प्रकार पूर्व में एवं आगे सर्वत्र समझना चाहिये । अब अनन्तानुबंधी कषाय का मिथ्यादृष्टि के विकल्प से उदय होने एवं उसके उदयविहीन मिथ्यादृष्टि के संभव योगों के होने के कारण को स्पष्ट करते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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