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________________ बंधहेतु प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६ ३७ २. अथवा भय, अनन्तानुबंधी और कायषट्क की हिंसा को मिलाने पर भी सत्रह हेतु होते हैं। उनके पूर्ववत् (७,८००) सात हजार आठ सौ भंग होंगे। ३. इसी प्रकार जुगुप्सा, अनन्तानुबंधी और छह काय की हिंसा को मिलाने पर भी सत्रह हेतु होते हैं। उनके भी (७,८००) सात हजार आठ सौ भंग होंगे। ४. अथवा भय, जुगुप्सा, अनन्तानुबंधी और कायपंचक का वध मिलाने से भी सत्रह हेतु होते हैं। उनके (४६,८००) छियालीस हजार आठ सौ भंग होते हैं। इस प्रकार सत्रह बंधहेतु के चार प्रकार हैं और उन चारों प्रकारों के कुल भंग (६,०००+७,८००+७,८००+४६,८०० =६८,४००) अड़सठ हजार चार सौ होते हैं । अब मिथ्यात्वगुणस्थानवर्तो जघन्य और मध्यम पदभावी बंधहेतुओं के प्रकारों और उनके भंगों का विचार करने के पश्चात् उत्कृष्ट पदभावी बंधहेतु और उनके भंगों का प्रतिपादन करते हैं--- पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में छह काय का वध, भय, जुगुप्सा और अनन्तानुबंधी को मिलाने से अठारह हेतु होते हैं। उसके कुल भंग (७,८००) सात हजार आठ सौ होते हैं। इसमें विकल्प नहीं होने से प्रकार नहीं हैं। इस प्रकार मिथ्यात्वगुणस्थान के दस से लेकर अठारह हेतुओं पर्यन्त भंगों का कुल जोड़ (३४,७७,६००) चौंतीस लाख सतहत्तर हजार छह सौ है । मिश्यात्वगुणस्थान के बंधहेतुओं के विकल्पों व उनके भंगों का । सरलता से बोध कराने बाला प्रारूप इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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