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पंचसंग्रह
कसायजोगा- - कषाय और योग, य― और, पुब्बुत्ता - पूर्वोक्त-पूर्व में
हे हैं।
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गाथार्थ - छह काय का वध और मन तथा (पांच) इन्द्रियों का अनिग्रह इस तरह अविरति के बारह भेद हैं और कषाय तथा योग के भेद पूर्व में कहे गये होने से सुगम हैं ।
विशेषार्थ - गाथा में अविरति से लेकर योग पर्यन्त शेष रहे तीन सामान्य बंधहेतुओं के भेदों को बतलाया है और उसमें भी अविरति के बारह भेदों का नामोल्लेख करके कषाय और योग के क्रमशः पच्चीस एवं पन्द्रह भेदों के नाम पूर्व में कहे गये अनुसार यहाँ भी समझने का संकेत किया है ।
अविरति के बारह भेदों के नाम इस प्रकार हैं
'छक्कायवहो' इत्यादि, अर्थात् पृथ्वी, अप् (जल), तेज (अग्नि), वायु, वनस्पति और त्रस रूप छह कार्य के जीवों का वध - हिंसा करना और अपने-अपने विषय में यथेच्छा से प्रवृत्त मन और स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु ओर श्रोत्र, इन पांच इन्द्रियों को नियन्त्रित न करना, इस प्रकार से अविरति के बारह भेद हैं- 'इइ बारसहा' । असंयम के इन बारह भेदों की व्याख्या सुगम है । जैसे- पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा से विरत न होना, पृथ्वीकायिक अविरति है । इसी प्रकार शेष जलकायिक आदि अविरति के लक्षण समझ लेना चाहिए तथा मन की स्वच्छन्द प्रवृत्ति होने देना मन अविरति कहलाती है इत्यादि । अतः यहाँ उनकी विशेष व्याख्या नहीं की जा रही है । जिज्ञासुजन विस्तार से अन्य ग्रन्थों से समझ लेवें ।
कषाय के पच्चीस भेद' तथा योग के पन्द्रह भेद यथास्थान पूर्व में बतलाये जा चुके हैं । तदनुसार उनके नाम और लक्षण यहाँ भी समझ लेना चाहिये ।
१ अनन्तानुबन्धी क्रोध आदि संज्वलन लोभ पर्यन्त सोलह कषाय और हास्यादि नव नोकषाय ।
२
सत्य मनोयोग आदि चार मनोयोग, सत्य वचनयोग आदि चार वचनयोग और औदारिक काययोग आदि सात काययोग ।
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