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________________ 9 " ४७०४० mr बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट सोलह बंधप्रत्ययों के सर्व भंगों का जोड़ (४८+१६२+१४४० == १६८०) सोलह सौ अस्सी है। इस प्रकार अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान में नौ से लेकर सोलह तक के बंधप्रत्ययों के सर्व भंगों का विवरण और कुल योग इस प्रकार जानना चाहिये१. नौ बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग १००८० २. दस बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग ४५३६० ३. ग्यारह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग ६४०८० ४. बारह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग ११७६०० ५. तेरह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग ६४०८० ६. चौदह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी मंग ७. पन्द्रह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग १३४४० ८. सोलह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग १६८० इन सर्व भंगों का कुल जोड़ (४२३३६०) चार लाख तेईस हजार तीन सौ साट है। (५) देशविरतगुणस्थान -- इस गुणस्थान में आठ से चौदह तक बंधप्रत्यय होते हैं तथा त्रसकाय का वध यहाँ नहीं होने से पृथ्वी आदि वनस्पति पर्यन्त पांच स्थावरकाय अविरति होती है। अतएव पूर्व में बताये गये संयोगी भंगों के करणसूत्र के अनुसार एक संयोगी पांच, द्विसंयोगी दस, त्रिसंयोगी दस, चतुःसंयोगी पांच और पंचसंयोगी एक भंग होता है । जिनका उल्लेख काय के प्रसंग में एक दो आदि करके सम्भव भंग बनाना चाहिये । देशविरतगुणस्थान में आठ बंधप्रत्यय इस प्रकार हैं इन्द्रिय एक, काय एक, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोवादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये आठ बंबप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+२+१+२+१=८ । Jain Educaइनके भंग ६४५X४४३.४२४Sa६४८० होते हैं। www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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