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पंचसंग्रह : ४ इन सब विशेषताओं को ध्यान में रखकर अब अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान के बंधप्रत्यय, उनके विकल्पों और भंगों को बतलाते हैं । ___अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान में जघन्य से नौ बंधप्रत्यय होते हैं। उनके ये भंग हैं
इन्द्रिय एक, काय एक, कषाय एक, वेद तीन, हास्ययुगल एक, योग एक ये नौ बंधप्रत्यय हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार जानना चाहिये
१+१+१+३+२+१=६। अथवा
इन्द्रिय एक, काय एक, कषाय तीन, वेद एक, हास्ययुगल एक और योग एक, ये नौ बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
१+१+३+१+२+१= । इन नौ प्रत्ययों के भंग इस प्रकार उत्पन्न होते हैं। नपुसंक वेद और एक योग की अपेक्षा ६४६४४=(१४४)x१४२४१-२८८ । ___दो वेद और दो योगों की अपेक्षा ६x६x४=(१४४)x२x२x२ =११५२।
तीन वेद और दस योगों की अपेक्षा ६x६x४= (१४४)३x२x १०=८६४० ।
इन सब भंगों का जोड़ (२८८+११५२+८६४० = १००८०) दस हजार अस्सी है।
अब दस आदि बंधप्रत्ययों के भंग बतलाते हैं । मिश्र गुणस्थान के समान ही दस आदि बंधप्रत्ययों में प्रत्ययों की संख्या और उनके विकल्पों को जानना चाहिए । किन्तु ऊपर बताई गई विशेषता के अनुसार इस अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में बंधप्रत्ययों के भंगों में अन्तर पड़ जाता है। अतः उसी विशेषता के अनुसार दस से सोलह तक के बंधप्रत्ययों के भंगों को बतलाते हैं ।
दस बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग इस प्रकार उत्पन्न होते हैं
(क) एक वेद और एक योग की अपेक्षा ६४१५४४(%D३६०) १X २४१-७२०
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