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________________ बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १४७ (ख) ६x२०x४४३x२x२x१२=६६१२० भंग होते हैं। ६x२०४४x२x२x२x१=३८४० भंग होते हैं। (ग) ६४१५४४४३४२४१२=२५६२० भंग होते हैं। ६४१५४४४२x२x १=१४४० भंग होते हैं । इन सब विकल्पों के भंगों का कुल योग (२५६२०+१४४०+६६१२० +३८४०+-२५६२०+१४४०=१२७६८०) एक लाख सत्ताईस हजार छह सो अस्सी होता है। अब चौदह बंधप्रत्यय, उनके विकल्प और भंगों को बतलाते हैं। चौदह बंधप्रत्ययों के तीन विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये चौदह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+५+४+१+२+१=१४ । (ख) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, ये चौदह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकरचना इस प्रकार जानना चाहिए । १+४+४+१+२+१+१=१४ । (ग) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये चौदह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकरचना का प्रारूप इस प्रकार है १+३+४+१+२+२+१= १४ । इन चौदह बंधप्रत्ययों के विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ६x६x४xx२x १२= १०३६८ भंग होते हैं । ६x६x४x२x२x१=५७६ भंग होते हैं । (ख) ६४१५X४Xx२x२x १२=५१८४० भंग होते हैं । ६X १५X४x२x२x२x१=२८८० भंग होते हैं । (ग) ६४२०४४४३४२४१२=३४५६० भंग होते हैं। ६x२०x४x२x२x१=१९२० भंग होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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