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________________ १४६ इन तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार है (क) ६×२०x४X३X२×१२=३४५६० भंग होते हैं । ६ × २० × ४ × २ × २४१ = १६२० भंग होते हैं । (ख) ६×१५ × × ×३ × २ × २ × १२=५१८४० भंग होते हैं । ६ × १५ × ४ × २ ×२x२४१ = २८८० भंग होते हैं । (ग) ६×६×४×३×२×१२= १०३६८ भंग होते हैं । ६×६ × ४× २ × २ × १ = ५७६ भंग होते हैं । इन बारह बंधप्रत्ययों के भंगों का कुल जोड़ (३४५६० + १९२०+ ५१८४०+२८८०+१०३६८+ ५७६= १०२११४) एक लाख दो हजार एक चौदह होता है । अब तेरह बंधप्रत्यय के विकल्पों और भंगों को बतलाते हैं । तेरह बंधप्रत्ययों के तीन विकल्प इस प्रकार हैं पंचसंग्रह : ४ ( क ) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय चार वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+४+४+१+२+१=१३ । (ख) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, ये तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंहष्टि इस प्रकार है १+३+४+१+२+१+१=१३ , (ग) इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक हास्यादि युगल एक, भययुगल, और योग एक, इस प्रकार तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । इनका अंकों में प्रारूप इस प्रकार है १+२+४+१+२+२+१=१३ इन तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं- (क) ६ × १५X४X३X२×१२ = २५६२० भंग होते हैं । × २ × १ = १४४० भंग होते हैं । For Private & Personal Use Only ६×१५X४x Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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