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पंचसंग्रह : ४
सासादन गुणा थान - इस गुणस्थान में दस से लेकर सत्रह तक बंध प्रत्यय होते हैं । इस गुणस्थान की यह विशेषता है कि सासादनसम्यग्दृष्टि जीव नरकगति में उत्पन्न नहीं होता है । इसलिए इस गुणस्थान वाले के यदि वैब्रियमिश्रकाययोग होगा तो देवगति की अपेक्षा से होगा । वहाँ नपुंसक वेद नहीं होता है, किन्तु स्त्रीवेद और पुरुषवेद होता है । अतएव बारह योगों के साथ तीन वेदों को जोड़करों की रचना होगी, किन्तु वैब्रियमिश्रकाययोग के साथ नपुंसकवेद को छोड़कर शेष दो वेदों की अपेक्षा भंगों की रचना होगी । इस विशेषता को बतलाने के बाद अब बंधप्रत्ययों और उनसे भंगों को बतलाते हैं । सासादनगुणस्थान में जघन्य से दस बंधप्रत्यय होते । परन्तु इस गुणस्थान वाले नरकगति में न जाने से यहाँ वैक्रियमिश्रकाययोग की अपेक्षा नपुंसकवेद सम्भव न होने से इसके भंगों के दो विकल्प इस प्रकार हैं
इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार दस बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
१+१+४+१+२+१ः १ 1
इनके भंगों के लिए रचना दो प्रकार से होगी
(क) ६ x ६x४×३ × २ × १२ = १०३६८ भंग होते हैं । बारह योगों के साथ तीन वेदों को जोड़ने की अपेक्षा ।
(ख) ६×६x४×२x२×१ = ५७६ भंग होते हैं । वैक्रियमिश्रकाययोग के साथ नपुंसकवेद छोड़कर ।
इन दोनों का योग ( १०३६८ + ५७६= १०६४४) दस हजार नौ सौ चवालीस है ।
अब ग्यारह बंधप्रत्यय और उनके विकल्प तथा मंगों को बतलाते हैं । ग्यारह बंधप्रत्ययों के दो विकल्प इस प्रकार जानना चाहिए
(क) इन्द्रिय एक काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसं दृष्टि इस प्रकार है
१+२+४+१+२+१=११।
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