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________________ १३४ पंचसंग्रह : ४ इन दस बंधप्रत्ययों के भंग तेतालीस हजार दो सौ (४३२००) होते हैं । उनके निकालने का प्रकार यह है पांच मिथ्यात्व, छह इन्द्रियों, छह काय, चारों कषाय, तीन वेद, हास्यादि एक युगल और दस योग, इन्हें क्रम से स्थापित करके परस्पर में गुणा करने पर जघन्य दस बंधप्रत्ययों के भंग सिद्ध होते हैं । जो इस प्रकार हैं ५४६x६x४४३४२X१०= ४३२०० । ग्यारह बंधप्रत्यय बनने के तीन विकल्प हैं। यथाक्रन से वे इस प्रकार जानना चाहिये (क) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक हास्यादि युगल एक और योग एक, कुल मिलाकर ११ ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । जिनका अंकानुरूप प्रारूप इस प्रकार होगा १+१+२+३+१+२+१=११ । (ख) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस तरह कुल ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । जिनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार होगी १+१+१+४+१+२+१=११।। (ग) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भय-जुगुप्सा में से एक और योग एक, ये कुल मिलाकर ग्यारह बंघप्रत्यय होते हैं। जिनका अंकन्यास का प्रारूप इस प्रकार जानना चाहिये १+१+१+३+१+२+१+१=११। उपर्युक्त ग्यारह बंधप्रत्ययों के तीनों विकल्पों के भंग परस्पर में गुणा करने पर इस प्रकार जानना चाहिये (क) ५४६४१५X४४३४२४१०=१०८००० भंग होते हैं। (ख) ५X६x६x४४३४२४१३=५६१६० मंग होते हैं। (ग) ५X ६XX४Xx२x२x१०-८६४०० भंग होते हैं। इन तीनों विकल्पों के भंगों के प्रमाण को जोड़ने पर (१०८०००+ ५६१६.+८६४०० =२५०५६०) ग्यारह बंधप्रत्ययों के सर्व भंगों का प्रमाण दो लाख पचास हजार पांच सौ साठ होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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