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बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट
१३३ गुणनफल तीस हुआ तथा पहली हारराशि एक का अगली हारराशि दो से गुणा करने पर हारराशि का प्रमाण दो हुआ। इस दो हार राशि का भाज्यराशि तीस में भाग देने पर भजनफल पन्द्रह आया। जो द्विसंयोगी भंगों का प्रमाण है । इसी क्रम से त्रिसंयोगी भंगों का प्रमाण बीस, चतुःसंयोगी भंगों का पन्द्रह. पंचसंयोगी भंगों का छह और षट्संयोगी भंगों का प्रमाण एक होगा। इन संयोगी मंगों की अंकसंदृष्टि इस प्रकार होगी
६ १५ २० १५ ६ १ इसी करणसूत्र के अनुसार अन्य बंधप्रत्ययों के भी भंग प्राप्त कर लेना चाहिए।
अब मिथ्यात्व आदि गुणस्थानों के बंधहेतु और उनके भंगों का निर्देश करते हैं।
मिथ्यात्वगुणस्थान-इस गुणस्थान में दस से लेकर अठारह तक बंध' प्रत्यय होते हैं। यथाक्रम से बंधप्रत्यय और उनके भंग इस प्रकार हैं
___ जो अनन्तानुबंधी की विसंयोजना करके सम्यग्दृष्टि जीव सम्यक्त्व को छोड़कर मिथ्यात्वगुणस्थान को प्राप्त होता है, उसके एक आवली मात्र काल तक अनन्तानुबंधिकषायों का उदय नहीं होता है तथा सम्यक्त्व को छोड़कर मिथ्यात्व को प्राप्त होने वाले जीव का अन्तर्मुहूर्त काल तक मरण नहीं होता है। अतएव इस नियम के अनुसार मिथ्यादृष्टि के एक समय में पांच मिथ्यात्वों में से एक मिथ्यात्व, पांच इन्द्रियों में से एक इन्द्रिय, छह कायों में से एक काय, अनन्तानुबंधी के बिना शेष कषायों में से क्रोधादि तीन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि दो युगलों में से कोई एक युगल और आहारकद्विक तथा अपर्याप्तकालभावी तीन मिश्र योग, इन पांच योगों के बिना पन्द्रह योगों में से शेष रहे दस योगों में से कोई एक योग, इस प्रकार जघन्य से दस बंधप्रत्यय होते हैं। जिनकी अंकस्थापना का प्रारूप इस प्रकार है
मि० इ० का० ० ० हा० यो. .
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